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कांचन-रंग में दिखा वर्तमान समाज का चेहरा

देहरादून स्थित दि इंडियन पब्लिक स्कूल के बच्चों की मनमोहक प्रस्तुति धनबाद : मानव के लिए पैसा या फिर पैसा के लिए मानव? वर्षों से यह सवाल खड़ा और जवाब के इंतजार में है. पैसे-रुपये, धन-संपत्ति के लिए पागलपन ने सभी तरह के सामाजिक, पारिवारिक व नैतिक मूल्यों को ध्वस्त करने का काम किया है. […]

देहरादून स्थित दि इंडियन पब्लिक स्कूल के बच्चों की मनमोहक प्रस्तुति
धनबाद : मानव के लिए पैसा या फिर पैसा के लिए मानव? वर्षों से यह सवाल खड़ा और जवाब के इंतजार में है. पैसे-रुपये, धन-संपत्ति के लिए पागलपन ने सभी तरह के सामाजिक, पारिवारिक व नैतिक मूल्यों को ध्वस्त करने का काम किया है. हालात इस कदर गंभीर हो चुके हैं कि दोस्ती व रिश्ते तक की परिभाषा रुपये-पैसे निर्धारित कर रहे हैं. रुपये हैं, तो सभी अपने.
नहीं हैं, तो अपने भी पराये. जी हां, आज के कथित आधुनिक व प्रगतिशील समाज के इस घिनौने चेहरे से रू-ब-रू कराने की कोशिश की देहरादून के राजावाला स्थित दि इंडियन पब्लिक स्कूल के बच्चों ने. शनिवार को धनबाद क्लब में स्कूल के बच्चों ने नाटक ‘कांचन-रंग’ के शानदार व आकर्षक मंचन द्वारा यह बताया कि पैसे-रुपये की लालच में इंसान कैसे मानवीय रिश्तों को कलंकित कर रहा है? बच्चों ने नाटक के माध्यम से धन की लोलुपता को लेकर तार-तार हो रहे आपसी पारिवारिक रिश्तों के परिणामों पर सोचने को विवश कर दिया. मुख्य पात्र पांचू के किरदार की हर किसी ने सराहना की. नाटक की निर्देशक मंजू सुद्रिंयाल व सह निर्देशक शकुंतला जुगरान थीं. मौके पर स्कूल के चेयरमैन व राज्यसभा सांसद रवींद्र किशोर सिन्हा, सांसद पीएन सिंह, मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल, जिप अध्यक्ष रोबिन गोराईं, पूर्व मंत्री ओपी लाल, विधायक राज सिन्हा, एके सहाय, युवा व्यवसायी अमितेश सहाय, मुखिया अनिता गोराईं, बबलू सहाय, संजीव रंजन, अजय सहाय, दिलीप सहाय आदि मौजूद थे.
क्या है नाटक : कांचन-रंग यानी सोना का रंग. नाटक के लेखक हैं-शंभु मित्रा और अमित मित्रा. नाटक एक रिटायर क्लर्क यदु गोपाल बाबू के घर के ईद-गिर्द घूमता है. यदु बाबू की पत्नी व उनके बच्चों ने अपने करीबी रिश्तेदार (जिनकी मृत्यु हो जाती है) के बेटे पांचू को नौकर तक बना देते हैं.
यदु गोपाल बाबू के मध्यवर्गीय परिवार में नौकर का काम करनेवाला युवक पांचू उस परिवार को अपना मानता है लेकिन परिवार वाले उसे एक नौकर के रूप में ही लेते हैं. यदु गोपाल बाबू के दो बेटे हैं और दोनों ही निकम्मे हैं. बड़ा बेटा फिल्म और फैशन की दुनिया में कॅरियर बनाने की सोचता रहता है, तो छोटा विलायत घूमने के सपने देखता रहता है. इसी बीच पांचू को उनके किराएदार का भाई लॉटरी का एक टिकट दिला देता है. अपने मालिक की दिन रात फटकार सुनने वाले नौकर की किस्मत अच्छी निकलती है और उसके नाम पर एक लाख की लॉटरी लग जाती है. इसके बाद मालिकों का व्यवहार अचानक से बदल जाता है.
नौकर की खूब आवभगत होने लगती है. इसी बीच खबर आती है कि नौकर के नाम की लॉटरी गलत है. उसके नाम पर कुछ नहीं निकला है. यह खबर सुन कर उसके मालिकों का व्यवहार फिर पहले जैसा हो जाता है और उसे दोबारा से प्रताड़ित करने लगते हैं. एक बार फिर से टेलीग्राम आता है कि नौकर के नाम की ही लॉटरी लगी है. इसके बाद एक बार फिर से मालिकों का व्यवहार बदलता है, लेकिन इस बार नौकर उनकी सच्चाई समझ जाता है और उनके घर से चला जाता है.
मंचन किया : नाटक का मंचन इशान शर्मा, विनिता मिश्रा, केशव खेर, तेजस्विनी श्रीवास्तव, अंकित कुमार, अक्षय चौधरी, अनिकेत राणा, हिमांशु कश्यप, अब्दुल रहमान, अनुराग कुमार आदि ने किया.

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