धनबाद: धनबाद में लाइसेंसी शराब दुकानों के जरिए ग्राहकों से प्रतिमाह करोड़ों रुपये की लूट का गोरखधंधा चल रहा है. धनबाद की लाइसेंसी शराब दुकानों पर सारे नियम-कानून की धज्जियां उड़ाते हुए एमआरपी से 15 से 25 रुपये ज्यादा लेकर धड़ल्ले से बीयर की केन और बोतलें बेची जा रही हैं. चूंकि शराब की लाइसेंसी दुकानें सिंडिकेट बनाकर जिन लोगों ने ली हैं, उनके माफियाओं और रसूखदार लोगों से संबंध हैं और एक्साइज के वरीय अधिकारी के साथ इनकी मिलीभगत है, सो लंबे अरसे से लूट का सिलसिला बदस्तूर जारी है.
एमआरपी नहीं मौसम बदलने से तय होती हैं शराब की कीमतें : सिंडिकेट की मोनोपॉली का आलम यह है कि जिले की हर लाइसेंसी शराब दुकान पर शराब धड़ल्ले से एमआरपी से ज्यादा कीमत पर बिकती है. यहां शराब की कीमत एमआरपी से नहीं, मौसम बदलने से तय होती है. मसलन जाड़े में रम की डिमांड अधिक होती है, तब रम की बोतलें तय कीमत से 10-15 रुपये अधिक लेकर बेची जाती है. वहीं गरमी के मौसम में बीयर की डिमांड अधिक होने से बीयर की केन और बोतलें 15-25 रुपये ज्यादा कीमत पर बेची जाती हैं.
60 रुपये की बीयर केन बिकती है 75 से 85 रुपये में : धनबाद के अलग-अलग इलाकों में बीयर केन अलग-अलग कीमतों पर बिकती है, लेकिन आश्चर्य की कहीं एमआरपी पर नहीं बिकती. गॉडफादर और हैवर्ड 5000 ब्रांड की 500 एमएल की बीयर केन का अधिकतम खुदरा मूल्य केन पर 60 रुपये मुद्रित है, लेकिन धनबाद मुख्य शहर की लाइसेंसी शराब दुकानों में यह कहीं 70 रुपये में बेची जाती है, कहीं 75 रुपये में.
वहीं झरिया और दूर-दराज के कस्बाई और ग्रामीण इलाकों में यही केन कहीं 80 रुपये में बिकती है, तो कहीं 85 रुपये में. सूत्र बताते हैं कीमतों का यह समीकरण बिक्री के आंकड़ों से तय होता है. शहरी क्षेत्रों में बिक्री ज्यादा होती है, इसलिए कीमत 70 से 75 रुपये है, जबकि कस्बाई और ग्रामीण क्षेत्रों में बिक्री कम होने से कीमत बढ़ा कर ली जाती है ताकि कम बिक्री की भरपायी अवैध तरीके से ज्यादा मुनाफा कमा कर की जा सके.
लूट का खुला खेल : कहते हैं कि चोरी गुपचुप की जाती है लेकिन धनबाद की लाइसेंसी दुकानों पर तो लूट का खुला खेल चल रहा है. लाइसेंसी दुकानों में न केवल अवैध तरीके से एमआरपी से ज्यादा मूल्य पर शराब बेची जा रही है, बल्कि दुकानों में टंगी मूल्य सूची में पूरे ठाट से एमआरपी की बजाय यही अवैध कीमतें दर्ज की गयी हैं.
सेल्समैन की शामत : अवैध ढंग से करोड़ों का मुनाफा कमाने के बावजूद लाइसेंसी शराब दुकानों के मालिक सिंडिकेट के लोग शराब दुकानों पर कभी नजर नहीं आते इसलिए वे उपभोक्ताओं के गुस्से से भी बचे रहते हैं. शामत उनकी आती है जो तीन हजार-पैंतीस सौ रुपये की मामूली तनख्वाह पर इन दुकानों में शराब बेचते हैं. अवैध कीमत पर गैरकानूनी ढंग से शराब बेचने को लेकर अक्सर लाइसेंसी दुकान के इन सेल्समैनों से उपभोक्ताओं की झड़प होती है और कभी-कभी मारपीट की नौबत भी आ जाती है. लाइसेंसी शराब दुकानों के कई सेल्समैन आजिज आकर कहते देखे गये हैं-‘जाइये, एक्साइज के असिस्टेंट कमिश्नर और सिंडिकेट से पूछिए कि एमआरपी से ज्यादा कीमत पर शराब क्यों बिक रही है? हम तो बस महीने के तीन हजार पानेवाले नौकर हैं.’