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घरौंदों में बसते थे मासूम सपने-धनबाद. बचपन की बातें और यादें मन को हमेशा प्रफुल्लित करती हैं. बचपन की बातों को याद कर ऐसा लगता है जैसे वापस बचपन को जी रहे हैं. बचपन की दीपावली की बात हो तो वैसे भी एक साथ कई बातें जीवंत हो उठती है. कोयलांचल की महिलाओं से हम […]

घरौंदों में बसते थे मासूम सपने-धनबाद. बचपन की बातें और यादें मन को हमेशा प्रफुल्लित करती हैं. बचपन की बातों को याद कर ऐसा लगता है जैसे वापस बचपन को जी रहे हैं. बचपन की दीपावली की बात हो तो वैसे भी एक साथ कई बातें जीवंत हो उठती है. कोयलांचल की महिलाओं से हम उनके बचपन की दीपावली की यादें साक्षा कर रहे हैं. करते थे खूब आतिशबाजी बचपन की दिवाली को याद करते ऐसा लग रहा है कि हम वापिस बचपन में पहुंच गये हैं. महीनों पहले दीपावली की धूम मचती थी. बचपन जमशेदपुर में बीता. चार बहन भाई में मैं तीसरे नंबर पर थी. पिता व्यवसायी थे. हम मारवाड़ियों में दीपावली काफी धूमधाम से मनायी जाती है. सबसे ज्यादा उत्सुकता पटाखे को लेकर होती थी. बहनों के साथ मिलकर घरौंदा सजाती थीं. उसमें पसंद के कलर करती. खूब सजाती. हमारी रंगोली खास होती थी. दीपावली के दिन मां के साथ घरों में दीया जलाती. कतार में सजे दीये हर कोना रोशन करते थे. घरौंदा में मां लक्ष्मी की पूजा कर भाई का घर हमेशा भरा रहे यह वरदान मांगते थे. पूजा के बाद आतिशबाजी करते थे. मुझे अनार और चाकलेट बम में चिंगारी लगाकर बहुत मजा आता था. पापा भी हम बच्चों के साथ आतिशबाजी करते थे.संगीता चिरानियां, संस्थापिका सुरभि महिला समितिमिस करती हूं बचपन की दीवालीदीपावली की वो उमंग और उत्साह अब नजर नहीं आता, जो हमारे बचपन में हुआ करती थी. दीपावली आने के पहले से ही हमारी तैयारी शुरु हो जाती थी. सबसे पहले घरौंदा के लिए धूम मचती थी. हम सहेलियों में सुंदर घरौंदा को लेकर प्रतिस्पर्धा होती थी, जिसका घरौंदा सबसे सुंदर होता था उसे सब मिलकर पार्टी देती थी. घरौंदा दो मंजिला बनाती. उसमें टेरेस जरूर बनाती थीं. मनपसंद रंगों से सजाने के बाद उसे गोटे और झालर से सजाती थी. घरौंदा में दीया जलते रहे इसका विशेष ध्यान रखती थी. मां के साथ मिलकर पूजा की तैयारी करती थी. मुझे हल्के फुल्के पटाखे पसंद हैं. आज अपने बेटों, पोते पोतियों के साथ दीपावली सेलीब्रेट करती हूं. हर दीपावली पर बचपन की दीवाली मिस करती हूं. दीवाली की खुशियां अपनों के साथ मनाकर खुशी मिलती है.निर्मला तुलस्यान, पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष मारवड़ी महिला सम्मेलनउत्साह से मनाती हूं दीपावलीलकड़पन की दीवाली आज भी जेहन में जीवंत है. घर में महीनों पहले से दीपावली की तैयारी चलने लगती थी. हम भी दीपावली आने पर खुश हो जाते थे. मां को भगवान के पोशाक बनाते देखती थी. घर के हर कोने को चमकाया जाता. वंदनवार और दीयों से घर जगमगा उठता था. हमारे समय में कहां चाइना लाइट्स हुआ करते थे. सभी अपने घरों में दीयों की कतार सजाते थे. घरौंदा अपने हाथों से बनाते थे. वो सिर्फ घरौंदा नही था उसमें हमारे मासूम सपने बसते थे. मां घर में जैसे ही गणेश भगवान और मां लक्ष्मी की पूजा प्रारंभ करती हम अपने घरौंदे में मां लक्ष्मी की पूजा करते. भाई का घर भरते थे, मुझे बम, रॉकेट बड़े पटाखों में रूचि नहीं रहती थी. रंग बिरंगी फुलझड़ियां, अनार छुड़ा कर खुशी होती थी. दीवाली मेरा प्रिय त्योहार है. आज भी उसी उत्साह से मनाती हूं.विमला बंसल, पूर्व जिलाध्यक्ष मारवाड़ी महिला समिति

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