धनबाद. बचपन की दुर्गापूजा की बात निराली थी. एक माह पहले से ही पूजा का इंतजार रहता था. एक रुपये में पूरा चार दिनों तक मेला का मजा लेता था. मेले में अपनत्व था, भरपूर मजा था. तब झरिया व हीरापुर हरिमंदिर की दुर्गापूजा की ख्याति थी. कभी-कभी तो दोस्तों के साथ झरिया के लिए पैदल मेला देखने चल जाता था. यह कहना है पीएमसीएच के शिशु रोग विभाग के एचओडी पद से रिटायर डॉ. आरडी साहू का. गांधी नगर निवासी डा साहू ने बताया कि झरिया में सर्कस व मीना बाजार की ख्याति थी. बात लगभग पचास वर्ष पहले की है.
एक रुपये में खिलौने, बालुशाही व जलेबी के साथ झूले का भी मजा लेता था. चार आने में सर्कस देखने का अलग ही मजा था. अक्सर मेला देखने दोस्तों के साथ भाग जाता था. हीरापुर में पूजा का अपना अलग ही अंदाज था. लेकिन अब दुर्गापूजा में वह अपनापन व उल्लास देखने को नहीं मिलता है.
बेतरतीब भीड़, बड़े-बड़े लाउडस्पीकर से कोलाहल होते क्षेत्र व प्रतियोगिता की होड़ में पूजा का महत्व गौण होता चला गया. यही कारण है कि अब मेला में लोग शाम या रात के बजाय दिन में ही घूमना पसंद करते हैं. मेला में छेड़खानी, मारपीट आदि की घटनाएं चिंतनीय है. हमें मिलजुल कर व भाईचारे से पर्व मनाना चाहिए. डॉ. साहू की पत्नी मीना साहू ने भी बचपन की याद ताजा की. उनकी चार बेटियां व एक बेटा है. बेटी डॉ सीमा साहू एसएसएलएनटी अस्पताल में सेवा दे रही हैं. बेटी डॉ उषा किरण बिहार में हैं. निशा साहू एमबीए तो रीना साहू बीटेक की हैं, छोटा बेटा डॉ रवि आनंद शिशु रोग में पीजी कर रहे हैं.