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दो रुपये में घूम लेते थे मेला, खाते थे मिठाई

धनबाद. दुर्गा पूजा आते ही बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं. उस वक्त घर-परिवार ही नहीं, मुहल्ले के लोगों में भी बहुत भाईचारा व प्रेम था. दशहरा का मेला भी हम सपरिवार ही नहीं, मुहल्ले के लोग भी एक साथ पैदल घूमने जाया करते थे. एक-दूसरे के साथ सुख-दु:ख बांटते थे. दशहरा पर तो […]

धनबाद. दुर्गा पूजा आते ही बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं. उस वक्त घर-परिवार ही नहीं, मुहल्ले के लोगों में भी बहुत भाईचारा व प्रेम था. दशहरा का मेला भी हम सपरिवार ही नहीं, मुहल्ले के लोग भी एक साथ पैदल घूमने जाया करते थे. एक-दूसरे के साथ सुख-दु:ख बांटते थे. दशहरा पर तो लोग बहुत उत्साहित रहते थे. यह कहना है रेलवे से वर्ष 2002 में ऑफिस सुपरीटेंडेंट से सेवानिवृत्त कोलाकुसमा निवासी जमुना प्रसाद का.

बताते हैं कि पैसे कम थे, पर उसकी वैल्यू बहुत ज्यादा थी. एक-दो रुपये में पूरा मेला घूमने के साथ-साथ मिठाई भी खा लेते थे. पहले बड़े बेटे की पैंट साढ़े आठ रुपये व शर्ट छह-सात रुपये में आ जाते थे, पर अब वो बात कहां, खरीदने जायें तो अच्छे कपड़े के लिए पांच हजार रुपये भी कम पड़ जायें. तब पूरा परिवार संयुक्त था और आज भी मेरा पूरा परिवार संयुक्त रूप से रहता है. हर साल दशहरा में पूरा परिवार एक साथ मेला घूमने जाता है.

परिवार : बड़े बेटे संजय कुमार प्रसाद, बहु सावित्री प्रसाद, बेटे अजय कुमार, सुधा कुमारी, बेटे विनय कुमार, पौत्र अरनव, अभिनव.

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