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हरि मंदिर में होती है परंपरागत दुर्गापूजा
धनबाद : कोयलांचल के दुर्गोत्सव में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है हीरापुर हरि मंदिर शारदिया सम्मेलनी. इस वर्ष पूजा का 83वां साल है. दुर्गापूजा प्रारंभ होने के साल से ही यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रारंभ की गयी थी, जो आज भी बरकरार है. षष्टी से मां का पट खुल जाता है. सप्तमी सुबह को ढाकी की […]
धनबाद : कोयलांचल के दुर्गोत्सव में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है हीरापुर हरि मंदिर शारदिया सम्मेलनी. इस वर्ष पूजा का 83वां साल है. दुर्गापूजा प्रारंभ होने के साल से ही यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रारंभ की गयी थी, जो आज भी बरकरार है. षष्टी से मां का पट खुल जाता है. सप्तमी सुबह को ढाकी की थाप पर महिलाएं, पुरुष, लोको टैंक से कोलाबोउ को लाते हैं. कोलाबोउ को पूजा स्थल पर आसन देने के बाद देवी दुर्गा का आहवान किया जाता है.
सप्तमी से नवमी तक मां का भोग भक्तों के बीच वितरित किया जाता है. दशमी को दही चूड़ा का भोग बांटा जाता है. सप्तमी से नवमी तक रात्रि आठ बजे तक कल्चरल प्रोग्राम कराया जाता है. गुगेन, धनंजय, संजय चक्रवर्ती द्वारा 25 सालों से बंगाली रीति से पूजा संपन्न करायी जा रही है. राज रंजन डेकोरेटर द्वारा पंडाल का कार्य किया जाता है. रामपुर हाट से ढाकी अमृत और उसकी टीम आती है. 22 अक्तूबर को घट विसर्जन है. 23 को सिंदूर खेला के बाद संध्या में मां को विदाई दी जायेगी. हरि मंदिर के पास के खटाल के ग्वाला लोग प्रतिमा को अपने कंधे पर उठाकर लोको टैंक में विसर्जित करते हैं.
इन्होंने की थी शुरुआत : हीरापुर में दुर्गा मंदिर में दुर्गोत्सव की शुरुआत की गयी थी. 1933 से हरि मंदिर में पूजा की जाने लगी. शेखर चंद्र घोष, केपी बनर्जी, पंचानन सेनगुप्ता, प्रोमोथो हाजरा, भोला बाबू ने पूजा की शुरुआत की थी. पहली पूजा जिस विधि विधान से की गयी थी. आज भी उसी परंपरा का निर्वहन समिति द्वारा की जाती है.
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