धनबाद : दवा कंपनियों के पैसे से चिकित्सकों का एक तबका देश-विदेश की सैर करता है. बदले में चिकित्सक दवा कंपनियों की बतायी दवाएं लिखते हैं. इसमें से कई दवाएं महंगी होती हैं. इसके बावजूद कि बाजार में सस्ती दवाएं भी होती हैं, डॉक्टर किसी खास कंपनी की महंगी दवा ही लिखते हैं. कई बार तो ऐसी दवा लिख दी जाती है, जो सर्वसुलभ नहीं. मरीज के परिजन बाजार का चक्कर लगाते रहते हैं. आलम यह है कि प्राय: सरकारी व निजी अस्पतालों व क्लिनिकों में दवा प्रतिनिधियों की फौज खड़ी होती है. मरीजों को छोड़ चिकित्सक इन्हें ही तवज्जो देते हैं.
सौ रुपये की दवा तो 40 डॉक्टर का, 15 प्रतिनिधि को
जानकारों की मानें तो दवा के नाम पर भारी कमीशनखोरी का मामला चल रहा है. एक-एक दवा कंपनी खास चिकित्सकों को 40-50 प्रतिशत तक कमीशन दे रही है. वहीं 10-15 प्रतिशत तक कमीशन दवा प्रतिनिधियों को भी दिया जाता है. ऐसे में दवा के रैपर में कीमत भी हर बार बढ़ा कर प्रिंट की जाती है. जब भी नयी दवा पहुंचती है, उसकी कीमत पहले से बढ़ी होती है.
भोपाल का मामला हुआ वायरल
हाल ही में भोपाल में दवा कंपनी व चिकित्सकों के बीच सांठगांठ का मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है. इसमें दवा कंपनी ने लगभग पचास चिकित्सकों का नाम सार्वजनिक कर दिया है. इसमें लिखा है कि कैसे सालाना एक-एक चिकित्सक पर कंपनी ने करोड़ों रुपये टूर, ट्रैवल आदि पर खर्च किये हैं, लेकिन टारगेट पूरा किये बगैर चिकित्सकों ने दूसरी कंपनी की दवा लिखनी शुरू कर दी. अंत में इनके नाम सार्वजनिक कर दिये गये.
सरकारी संस्थानों में नियमों का कड़ाई से पालन होना चाहिए. यहां लिस्ट में अंकित व उपलब्ध दवाओं को ही चिकित्सक को लिखना है, यह गाइडलाइन है. लेकिन निजी चिकित्सकों के लिए फिलहाल ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसका फायदा उठाया जा रहा है.
अमित कुमार, ड्रग इंस्पेक्टर