आइएसएम से पास आउट दुर्गेश झारबडे हैं देश की प्रमुख ऑयल एंड गैस सर्विस कंपनी एचएलएस एशिया लिमिटेड के वाइस प्रेसिडेंट
अभिषेक कश्यप
हार्डवर्किंग इज वनली की ऑफ सक्सेस. इसलिए आपको जो भी काम मिला है, उसे कड़ी मेहनत और पूरे कमिटमेंट के साथ करें. यह कहना है दुर्गेश झारबडे का. धनबाद स्थित इंडियन स्कूल ऑफ माइंस (आइएसएम) से पास आउट श्री झारबडे देश की प्रमुख ऑयल एंड गैस सर्विस कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट हैं.
आलीशान कॉरपोरेट ऑफिस में काम करते के बावजूद श्री झारबडे की जिंदगी की अतीत की सुनहरी यादों में धनबाद स्थित आइएसएम कैंपस में गुजारे दिनों का खास महत्व है. श्री झारबडे कहते हैं कि ‘‘धनबाद को कैसे भूल सकता हूं. आज मैं जो कुछ हूं, उसमें धनबाद की भूमि का भी कर्ज है.’’ पेट्रोलियम इंजीनियरिंग के एक औसत स्टूडेंट से देश की प्रमुख ऑयल एंड गैस सर्विस कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट बनने तक की दुर्गेश झारबडे की कहानी बेहद दिलचस्प है. एक रुढ़िवादी महाराष्ट्रीय परिवार में जन्मे दुर्गेश की स्कूली शिक्षा रायपुर के होलीक्रॉस स्कूल से हुई. 92 में होलीक्रॉस से 12वीं पास करने के बाद दुर्गेश ने साइंस कॉलेज, रायपुर में दाखिला लिया. श्री झारबडे बताते हैं-‘‘साइंस कॉलेज के कोटे से आइएसएम में बी टेक के लिए पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में दाखिला मिला.’’
रैगिंग का खौफ, अय्याशी और सन्यास : लेकिन आइएसएम में रैगिंग की वजह से उनके शुरुआती 3-4 महीने बहुत खराब बीते. रैगिंग के डर से वे कभी धनबाद स्टेशन पर रात गुजारते, कभी सिंदरी के एक मंदिर में सोने चले जाते, कभी बोधगया भाग निकलते. रैगिंग का खौफ ऐसा था कि एक बार तो वे घर भाग आये. पिता रामराव झारबडे ने पूछा तो बोले-‘‘जी, वहां के लड़के बहुत बदमाश हैं. वहां मैं पढ़ नहीं सकता.’’ चिंतित पिता उन्हें साथ लेकर धनबाद आये.
फिर आइएसएम के फस्र्ट ईयर के कुछ हमउम्र दोस्तों के समझाने पर उन्होंने इरादा बदला. रैगिंग के खौफ से बाहर निकलने के बाद वे अययाशी में डूब गये. श्री झारबडे हैं-‘‘एक हाथ में ताश के पत्ते, सिगरेट और दूसरे हाथ में शराब का ग्लास, पहला सेमेस्टर इसी अय्याशी में बीता, तो दूसरा सेमेस्टर स्टूडेंट्स की हड़ताल की भेंट चढ़ गया. दोस्तों के उकसावे पर 4-5 स्टूडेंट्स के साथ मैं भी हड़ताल पर बैठा. नतीजा यह हुआ कि दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा में मैं फेल होने की कगार पर जा पहुंचा. तब जाकर मुङो होश आया कि मेरे मां-बाप ने इतनी उम्मीदों के साथ मुङो यहां पढ़ने भेजा है और मैं कर क्या रहा हूं?
मैं उन्हें क्या जवाब दूंगा? मैंने यह नहीं सोचा कि शराब-सिगरेट कोई बुरी चीज है बल्कि यह सोचा कि मैं पढ़ने आया हूं लेकिन पढ़ाई न करके मैं अपना समय बरबाद कर रहा हूं. जैसे ही यह एहसास हुआ, जैसे साधु तपस्या करने जंगल चले जाते हैं, उसी तरह तीसरे सेमेस्टर में मैं सारे दोस्तों से कट कर पढ़ाई में जुट गया. उस वक्त क्लासेज के अलावा मेस जाने के लिए ही कमरे से बाहर निकलता था. बाकी वक्त एक तपस्वी की तरह मैंने पढ़ाई के नाम कर दिया था.
जब पढ़ाई की गाड़ी पटरी पर लौटी तब मैं वापस अपने दोस्तों, वीकएंड पार्टियों और कॉलेज की अन्य सामूहिक गतिविधियों से जुड़ा. आइएसएम में हमने एक फैशन शो भी कराया, लेकिन एक संतुलन बनाते हुए. अब पढ़ाई मेरी पहली प्राथमिकता थी. उसके बाद आखिरी साल नौकरी पाने की जद्दोजहद में बीता.’’
‘पेट्रोलियम’ नहीं ‘कटोरालियम’
आइएसएम, धनबाद के 93-97 बैच में पेट्रोलियम इंजीनियरिंग के स्टूडेंट रहे दुर्गेश झारबडे आज देश की प्रमुख ऑयल एंड गैस सर्विस कंपनी एचएलएस एशिया लिमिटेड में 7 अंकों में शानदार वेतन पानेवाले वाइस प्रेसिडेंट हैं. लेकिन जब साल 92 में उन्होंने आइएसएम में बी टेक के लिए पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में दाखिला लिया था, तब उनका मजाक उड़ाया जाता था. दरअसल उन दिनों आइएसएम में पेट्रोलियम इंजीनियरिंग ब्रांच में बहुत कम छात्र दाखिला लेते थे और उनमें से ज्यादातर स्टूडेंट्स को कैंपस इंटरव्यू में ओएनजीसी नौकरी देती थी.
लेकिन साल 92 के बाद ओवरस्टाफड होने की वजह से ओएनजीसी ने कुछ बरसों तक आइएसएम में कैंपस इंटरव्यू के दौरान ‘मास रिक्रूटमेंट’ नहीं किया, तब आइएसएम के दूसरे ब्रांच के छात्र दुर्गेश का मजाक उड़ाया करते थे-‘‘ पेट्रोलियम नहीं इसे ‘कटोरालियम’ ब्रांच कहो. नौकरी तो तुम्हें मिलेगी नहीं, फिर कटोरा लेकर भीख ही तो मांगना पड़ेगा!’’
दुर्भाग्य में ही छिपे होते हैं सौभाग्य के बीज
दुर्गेश बताते हैं-‘‘लेकिन मैं हताश नहीं हुआ क्योंकि मैं कभी महत्वाकांक्षी नहीं रहा. मैं सोचता था, ओएनजीसी न सही, इंजीनियरिंग की है तो कहीं-न-कहीं 4-5 हजार की नौकरी तो मिल ही जायेगी. संयोग देखिए, मैं 4-5 हजार की सोच रहा था जबकि कैंपस इंटरव्यू में पहली ही नौकरी 17,500 की मिली. महत्वाकांक्षी नहीं था सो कभी नौकरी बदलने की नहीं सोची. 18 साल से इसी कंपनी में हूं. लगन से काम करता रहा, तरक्की मिलती रही. आज सोचता हूं- जो होता है, अच्छे के लिए होता है. अगर ओएनजीसी में होता तो ऑफिस के किसी कोने में पड़ा होता. वाइस प्रेसिडेंट जैसी बड़ी जिम्मेवारी कहां मिलती!’’
अब भी जेहन में है धनबाद स्टेशन के लाजवाब छोले-भटूरे
आइएसएम कैंपस के अलावा दुर्गेश धनबाद स्टेशन पर चहलकदमी कर बिताये. अनगिनत रातों को कभी नहीं भूले, न ही स्टेशन की दुकानों और रेहड़ियों के पकवानों का स्वाद. उन्हें रामचरितर की अनोखी चाय याद है और रेहड़ियों पर बिकनेवाले लिट्टी-चोखे का स्वाद भी. लेकिन वे सबसे ज्यादा ‘मिस’ करते हैं रामचरितर चाय दुकान की बगलवाली दुकान पर बिकनेवाले छोले-भटूरे. वे बताते हैं-‘‘छोले-भटूरे का वैसा लाजवाब स्वाद मुङो और कहीं नहीं मिला.’