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साहित्य का सरोकार जीवन से

धनबाद: समाज के भौतिक सरोकारों से जीवन में मूल्य और आदर्श संकटग्रस्त हो गये हैं. ऐसे दौर में साहित्यिक और सांस्कृतिक उपक्रम समाज को जोड़ने का काम करते हैं. साहित्य और संस्कृति का सीधा सरोकार मूल्य और जीवन की उच्चताओं से होता है. इसीलिए भाषा के जरिये संस्कृति से जुड़ा जा सकता है और आगामी […]

धनबाद: समाज के भौतिक सरोकारों से जीवन में मूल्य और आदर्श संकटग्रस्त हो गये हैं. ऐसे दौर में साहित्यिक और सांस्कृतिक उपक्रम समाज को जोड़ने का काम करते हैं. साहित्य और संस्कृति का सीधा सरोकार मूल्य और जीवन की उच्चताओं से होता है. इसीलिए भाषा के जरिये संस्कृति से जुड़ा जा सकता है और आगामी पीढ़ी को आसन्न संकट से बचाना तभी संभव है. अंधी दौड़ में शामिल समाज को दिशा देने के लिए यह जरूरी है. इन्हीं चिंताओं और सवालों से जूझती शाम थी शुक्रवार की, जब नामचीन पत्रकार, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी आइएसएम के पेनमेन सभागार में तीन दिवसीय धनबाद उत्सव के उद्घाटन सत्र में जुटे थे.

मूल्यहीनता खतरनाक : वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश ने अपने संबोधन में साहित्य-संस्कृति को प्रश्रय देने की वजहों पर कुछ ज्वलंत दृष्टांतों-प्रकरणों से प्रकाश डाला. बड़े प्रतिष्ठानों के दिवालिया होने के उदाहरण देकर उन्होंने कहा कि बड़ी-बड़ी प्रतिभाओं के योगदान के बावजूद दुनिया के दिग्गज प्रतिष्ठान यदि फेल हो गये तो इसका एकमात्र कारण मूल्यहीनता है. यह किसी भी देश-समाज के लिए खतरनाक है. ऐसे ही दौर में प्रबंधन संस्थानों में गांधी, अरविंद, गीता के अध्यापन पर विचार किया जाने लगा है. उन्होंने कहा कि इतिहास बदलने के लिए जिस ताकत के स्नेत की जरूरत होती है वह साहित्य से प्राप्त होती है.

परंपरा और मूल्यों से कटना घातक : आध्यात्मिक सह सामाजिक संस्था प्रजापिता ब्रह्नाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की धनबाद केंद्र प्रमुख अनु दीदी ने पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण से भारतीय समाज में आ रही गिरावट पर चिंता जतायी. अपनी विरासत से कटी पीढ़ी भौतिक उन्नति तो कर लेती है, पर इससे उत्पन्न होनेवाला संकट हम नहीं देख पाते. परंपरा और मूल्यों से कटी नयी पीढ़ी भविष्य के समाज के संकट साबित होते हैं.

सांस्कृतिक साक्षरता जरूरी : अपने पहले उपन्यास से चर्चित हुई लेखिका महुआ माजी ने कहा कि आज जिस तरह झारखंड के पिछड़ेपन की बात की जा रही है उसे देखते हुए झारखंड में सांस्कृतिक साक्षरता की जरूरत है.

संस्कृति से जुड़ने का सूत्र : आइएसएम के चयनिका संघ के अध्यक्ष प्रो प्रमोद पाठक ने कार्यक्रम की प्रासंगिकता के संदर्भ में कहा कि भाषा के जरिये संस्कृति से जुड़ने का सूत्र मिलता है, संस्कृति संस्कार पैदा करती है.

सामाजिक बदलाव में साहित्य की भूमिका : प्रबंधविद तथा उपन्यासकार शरत कुमार ने कहा कि मनुष्य मूलत: अनुभव से सीखता है और साहित्य में जीवन के अनुभव का निचोड़ होता है. इस तरह के साहित्योत्सव सामाजिक बदलाव में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं.

अपने तरीके का पहला आयोजन : उत्सव के निदेशक अभिषेक कश्यप ने कहा कि धनबाद में अपनी तरह का यह पहला आयोजन होगा, जिसमें एक साथ सिनेमा, शास्त्रीय नृत्य, लोक संगीत, रंगमंच और साहित्य से जुड़े लोग एक मंच पर आ रहे हैं. मुंबई से आयी रंगकर्मी असीमा भट्ट ने आयोजन की विशिष्टता और उद्देश्य की सराहना की. इसके पूर्व अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया. कार्यक्रम का संचालन सुवर्णा बनर्जी ने किया.

ये थे मौजूद : वयोवृद्ध पत्रकार बनखंडी मिश्र, व्यवसायी रमेश रिटोलिया, सर्वेश्वरी समूह की धनबाद शाखा के संयुक्त मंत्री अशोक मेहता, युवा व्यवसायी अमितेश सहाय, रेन्बो ग्रुप के चेयरमैन धीरेन रवानी, धनबाद प्रखंड प्रमुख मणि महतो, कवि अनिल अनलहातू, डॉ. सुधीर सिंह, अनुज कुमार उर्फ टिंकू, किरिट चौहान, दिगंत पथ के शैलेंद्र कुमार, इंटक नेता कालीचरण यादव, सामाजिक कार्यकर्ता अनिल पांडेय, युवा कांग्रेस के अध्यक्ष अभिजीत राज, अशोक चौहान.

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