सिखों के नौ गुरुओं द्वारा एक पंथ चलाया जा रहा था. गुरु गोविंद सिंह ने इस पंथ को नयी दिशा दी थी. खुद भी अमृत छका था और बंदों को भी अमृत पान कराया था. उन्होंने कहा था ‘खालसा मेरो रूप है खास, खालसा में मैं करूं विश्वास.’ दिल्ली से आये बलजीत सिंह, गुरजीत सिंह रागी जत्था ने गुरवाणी व कीर्तन दरबार सजा कर संगत को निहाल किया.
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बैसाखी का जश्न: खालसा मेरो रूप है खास, खालसा में मैं करूं विश्वास
धनबाद: सिख समुदाय का नया साल बैसाखी की मंगलवार को कोयलांचल में धूम रही. सुबह से ही श्रद्धालु बड़ा गुरुद्वारा पहुंचने लगे. गुरु ग्रंथ साहेब को मत्था टेका. अरदास किया. जीजीपीएस ग्राउंड में मुख्य दीवान सजाया गया. गुरु ग्रंथ साहेब की सेवा बंदों ने की. अमृतसर से आये ढाढी जत्था के बलदेव सिंह मान ने […]
धनबाद: सिख समुदाय का नया साल बैसाखी की मंगलवार को कोयलांचल में धूम रही. सुबह से ही श्रद्धालु बड़ा गुरुद्वारा पहुंचने लगे. गुरु ग्रंथ साहेब को मत्था टेका. अरदास किया. जीजीपीएस ग्राउंड में मुख्य दीवान सजाया गया. गुरु ग्रंथ साहेब की सेवा बंदों ने की. अमृतसर से आये ढाढी जत्था के बलदेव सिंह मान ने कहा कि 316 साल पहले 1699 में गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी.
एसपी को किया सम्मानित
एसपी राकेश बंसल एवं उनकी धर्मपत्नी मेघना बंसल गुरुद्वारा पहुंचीं और मत्था टेका. गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया. पुलिस कप्तान एवं उनकी पत्नी ने गुरुद्वारा में लंगर छका.
सेवा में लगी थी महिलाएं : आम गृहिणी, डॉक्टर, शिक्षिका, व्यवसायी कॉलेज गोईंग गल्र्स सभी गुरपर्व का प्रसादा बनाने में जुटी थीं. चरणजीत कौर मशीन में आटा डाल कर गूंथ रही थीं तो कुछ महिलाएं प्रसादा(रोटियां) बेल रही थीं. कुछ महिलाएं बड़े से तवे पर एक साथ तीस रोटियां सेंक रही थी. लोई बनाने में बच्चियां भी उनका साथ दे रही थीं.
पांच हजार लोगों ने छका लंगर
कार्यक्रम की समाप्ति के बाद सभी धर्म के पांच हजार लोगों ने लंगर का प्रसाद पाया. महिलाओं और पुरुषों के लिए लंगर छकने की व्यवस्था अलग थी. सेवादार बंदों को लंगर छका रहे थे.
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