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सिंह मैंशन विवाद : बस भी कीजिए, लोग हंस रहे हैं

धनबाद: सिंह मैंशन में संपत्ति बंटवारे को लेकर शुरू विवाद निहायत ही निजी स्तर तक जा पहुंचा है. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाये जा रहे हैं. रिश्तों की मर्यादा तार-तार हो रही है. बड़े-छोटे का कोई लिहाज नहीं रखा जा रहा है. इस सबसे सिंह मैंशन समर्थक हतप्रभ हैं. नि:संदेह कोयलांचल में वे बड़ी तादाद में […]

धनबाद: सिंह मैंशन में संपत्ति बंटवारे को लेकर शुरू विवाद निहायत ही निजी स्तर तक जा पहुंचा है. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाये जा रहे हैं. रिश्तों की मर्यादा तार-तार हो रही है. बड़े-छोटे का कोई लिहाज नहीं रखा जा रहा है. इस सबसे सिंह मैंशन समर्थक हतप्रभ हैं. नि:संदेह कोयलांचल में वे बड़ी तादाद में हैं. उन्हें स्व. सूरजदेव सिंह के जमाने की याद आ रही है, जब इस परिवार की एकता इनकी कामयाबी का मुख्य कारण और मिसाल मानी जाती थी. सूरजदेव सिंह और बच्चा सिंह एक सिक्के के दो पहलू जैसे थे. डिप्टी मेयर नीरज सिंह के पिता स्व. राजन सिंह को भी यथोचित सम्मान प्राप्त था. बलिया से लेकर धनबाद तक पांचों भाइयों में मनमुटाव तक की खबर किसी ने नहीं सुनी थी.

लेकिन आज उलटी गंगा बह रही है. घर का झगड़ा सड़कों के साथ-साथ फेसबुक तक आ पहुंचा है. प्राय: हर घर में संपत्ति को लेकर विवाद होता है, लेकिन घर का झगड़ा घर में ही सलट जाता है. मीडिया में इस तरह जुबानी जंग नहीं चलती. जिस सिंह मैंशन के नाम की तूती बोलती थी, आज लोग उस पर हंस रहे हैं. विवाद जनता मजदूर संघ को लेकर शुरू हुआ था. फिर राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में तब्दील हुआ. अब एकदम से व्यक्तिगत स्तर तक जा पहुंचा है. यह और कितना नीचे गिरेगा, यह कहना मुश्किल है.

क्या यह पब्लिक इश्यू है?
आइए, अब इस बात पर विचार करें कि क्या सिंह मैंशन और रघुकुल का विवाद पब्लिक इश्यू है? संपत्ति कुंती देवी को मिले या बच्च-नीरज को, जनता को क्या मिलेगा? क्या झरिया की सड़कें ठीक हो जायेंगी? क्या धनबाद नगर निगम क्षेत्र के लोगों को बजबजाती गंदगी से मुक्ति मिल जायेगी? क्या यह संपत्ति जनता पर खर्च होगी? क्या इन विवादों से हमारा जनरल नॉलेज (जीके) मजबूत होगा? ..नहीं न. तो फिर जनता के बीच हाय-तोबा क्यों? मीडिया मंच क्यों?

प्रभात खबर नहीं छापेगा आरोप-प्रत्यारोप
प्रभात खबर आपसी झगड़े में तब्दील सिंह मैंशन-रघुकुल विवाद पर आगे कोई आरोप-प्रत्यारोप नहीं छापेगा. क्योंकि इस झगड़े से हमारे पाठकों का कोई-लेना देना नहीं. यह व्यक्तिगत मामला है और इसका निपटारा परिवार अथवा न्यायालय में किया जाना चाहिए. इस परिवारिक विवाद में आम आदमी के लिए कुछ भी ग्रहण करने योग्य नहीं है.

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