पेयजल में क्लोरोफॉर्म का स्वीकृत मानक .2 मिली ग्राम प्रति लीटर है, जबकि इन संयंत्रों के पानी के नमूने में क्लोरोफॉर्म का औसत स्तर .5 मिली ग्राम प्रति लीटर पाया गया है. इससे कोयलांचल के पुरुषों में कैंसर का खतरा 16 गुणा बढ़ गया है, जबकि यहां की महिलाओं को इसका खतरा 379 गुणा है. पर्यावरण प्रदूषण के मद्देनजर जो कोयलांचल पहले से लाल घेरे में है, उसके लिए यह जोखिम कोढ़ पर खाज की तरह है.
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धनबाद में सप्लाइ के पानी से कैंसर का खतरा : आइएसएम का शोध
धनबाद: पेयजल संकट से जूझ रहे कोयलांचल की आधी आबादी जल प्रदूषण के कारण बेतरह जोखिम में है. धनबाद स्थित भारतीय खनि विद्यापीठ (आइएसएम) के शोधकर्ताओं के हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि प्रदूषण से मुक्त करने की प्रक्रिया के दौरान धनबाद व मैथन स्थित शोधन संयंत्र (ट्रीटमेंट प्लांट) के पानी स्वास्थ्य […]
धनबाद: पेयजल संकट से जूझ रहे कोयलांचल की आधी आबादी जल प्रदूषण के कारण बेतरह जोखिम में है. धनबाद स्थित भारतीय खनि विद्यापीठ (आइएसएम) के शोधकर्ताओं के हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि प्रदूषण से मुक्त करने की प्रक्रिया के दौरान धनबाद व मैथन स्थित शोधन संयंत्र (ट्रीटमेंट प्लांट) के पानी स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद खतरनाक हो गये हैं.
मंत्रलय प्रायोजित है अध्ययन : पेयजल व स्वच्छता मंत्रलय, भारत सरकार प्रायोजित इस शोध परियोजना में लगी इस टीम ने पूर्वी क्षेत्र के झारखंड में धनबाद स्थित माडा व मैथन के संयंत्रों के अलावा रांची के स्वर्णरेखा जल शोधन संयंत्र तथा पश्चिम बंगाल के आसनसोल-दुर्गापुर जल शोधन संयंत्र के पेयजल के नमूनों का केस स्टडी के तौर पर अध्ययन किया था. धनबाद व मैथन के जल संयंत्रों के नमूनों के बाद आसनसोल-दुर्गापुर जल शोधन संयंत्र के पेयजल के नमूनों में क्लोरोफॉर्म का स्तर खतरनाक पाया गया. इसके नमूने में क्लोरोफॉर्म की मात्र .4 मिली ग्राम प्रति लीटर मिली. पेयजल में क्लोरोफॉर्म की यह उपलब्धता भारतीय स्वीकृत मानक की तुलना में दुगुनी तथा अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण अभिकरण (यूएसपीए) के अधिकतम स्वीकृत मानक की अपेक्षा पांच गुनी है.
टीएमएच का उप उत्पाद है क्लोरोफॉर्म : दरअसल प्रदूषण से मुक्त करने की प्रक्रिया क्लोरीनेशन के दौरान क्लोरीन गंदगी, पत्तियां व अन्य कार्बनिक यौगिकों से संयोग कर ट्राई हैलोमीथेन (टीएचएम) बनाता है, जिसके परित्यक्त उप उत्पाद के रूप में क्लोरोफॉर्म बनता है.
भारत में जल शोधन में उन्नत प्रक्रिया का इस्तेमाल कर इसके न्यूनीकरण की जरूरत हो गयी है. शोध के परिणाम से जलापूर्ति को गंभीरता से लेने की जरूरत हो गयी है. अध्ययनों के मुताबिक क्लोरोफॉर्म ब्लाडर, कोलोन, अमाशय तथा गुदा कैंसर से जुड़ा है. आइएसएम की इस परियोजना में शामिल वैज्ञानिक प्रो एसके गुप्ता तथा प्रो बीके मिश्र की मानें तो जिन संयंत्रों के पानी का अध्ययन किया गया है उनमें क्लोरोफॉर्म की मात्र स्वीकृत मानक से बहुत अधिक पाये गये हैं जो भविष्य में उपयोक्ताओं के लिए खतरनाक साबित होगा. इस अध्ययन में इनके अलावे मीनाश्री कुमारी शोधकर्ता के रूप में शामिल रही हैं.
वैज्ञानिकों ने कहा
हमने पांच वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का सर्वे किया था. इस दौरान पानी में क्लोरोफॉर्म आदि की मात्र बहुत अधिक मिली. सामान्यत: यह 200 माइक्रो ग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए, जो 250-500 तक थी. इससे भविष्य में कैंसर का खतरा बहुत बढ़ जायेगा. हमारे देश में दूसरे देशों से कैंसर का खतरा दस गुणा अधिक है. खास कर महिलाओं में इसका खतरा और अधिक हो जाता है. यह शोध एक अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका में भी प्रकाशित हो चुका है.
प्रो एसके गुप्ता, एसोसिएट प्रोफेसर, पर्यावरण विज्ञान तथा अभियंत्रण विभाग, आइएसएम
प्लांट से आपूर्ति होनेवाले पानी में ब्लीचिंग पाउडर मिलाया जाता है. इससे एक कार्बनिक यौगिक बन जाता है जो स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं. पानी में अगर रसायन है और दस लाख में किसी एक की मृत्यु होती है तो पानी को ठीक माना जाता है. लेकिन यहां भविष्य में खतरा बढ़ने की आशंका है. इसलिए जरूरी है कि इसका स्तर कमे. इसके लिए प्लांट को ओर उन्नत बनाना होगा. पानी में थोड़ा क्लोरीन मिलाना जरूरी है, लेकिन इसके स्तर की मॉनीटरिंग जरूरी है.
प्रो बीके मिश्र, असिस्टेंट प्रोफेसर, इनवायरमेंटल साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग, आइएसएम
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