धनबाद: झरिया में भी हालात उत्तराखंड की तरह ही हैं. सामाजिक कार्यकर्ता व विज्ञानियों की लगातार चेतावनी को वहां नजरअंदाज किया गया. नतीजा प्रकृति के कोप ने सब कुछ निगल लिया. झरिया भी उसी ओर बढ़ रहा है. यह मजमून है झरिया कोलफील्ड बचाओ समिति के उस ताजा पत्र का जो केंद्रीय कोयला मंत्री को भेजा गया है. पत्र झरिया कोलफील्ड बचाओ समिति के सचिव अशोक अग्रवाल ने लिखा है. पत्र में झरिया पुनर्वास की ताजा स्थिति की जानकारी दी गयी है.
कोयले निकालें, लेकिन जनता की भी सुधि लें : पत्र में कहा गया है : बीसीसीएल जिस कदर झरिया में खनन कर रहा है, उससे यह स्पष्ट है वहां का एक ढेला कोयला भी नहीं बचेगा. झरिया कोलफील्ड बचाओ समिति इसके कतई खिलाफ नहीं है. लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या बीसीसीएल केवल कोयला के लिए जिम्मेवार है, वहां के निवासियों के लिए नहीं. कोकिंग कोल स्टील के लिए महत्वपूर्ण है. लेकिन उनका क्या कसूर है जो झरिया में रह रहे हैं. झरिया को लोगों को ओवरबर्डेन की तरह न समझा जाये. उनका समुचित पुनर्वास हो. सुप्रीम कोर्ट ने भी एक कमेटी का गठन किया है जो एक्शन प्लान के तहत आग, भू-धंसान व पुनर्वास का जायजा लेगी. बालू भराई का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि यह कितने दिन टिकेगा.
पुनर्वास के लिए 121 साइट चिन्हित किये गये हैं. लेकिन झरिया का शायद ही कोई ऐसा इलाका है जहां पुनर्वास की आवश्यकता नहीं है. 1.2 मिलियन की आबादी को तत्काल सुरक्षित इलाके में बसाने की आवश्यकता है. क्या जेआरडीए या सरकार इसके लिए तैयार हैं. कमेटी का आकलन है कि आग से प्रभावित आबादी के पुनर्वास के लिए कोई गंभीर पहल नहीं हो रही है.
आर्थिक पुनर्वास भी आवश्यक
सुरक्षित पुनर्वास के अलावा रोजी- रोटी की व्यवस्था करना भी महत्वपूर्ण है. इस बिंदु पर सबसे ज्यादा फोकस करने की जरूरत है. इसके लिए एक नीतिगत योजना तैयार की जाये. पांच सौ दिनों के रोजगार देने की सरकारी घोषणा भी कोई समाधान नहीं है. आखिर इसके बाद लोग क्या करेंगे. वे अपराध व नक्सलवाद का रास्ता पकड़ लेंगे.
राजपूत बस्ती का भी जिक्र
पत्र में राजपूत बस्ती का भी जिक्र किया गया है. वहां के वाशिंदों के लिए सौ स्कावयर फीट जमीन का प्रावधान किया गया था. लेकिन अब तक उन्हें जमीन नहीं मिली. यह भी पता नहीं चल पाया है कि आखिर वह जमीन है कहां. बीसीसीएल आग बुझाने को लेकर गंभीर नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने 2008 के एक आदेश में भी इसका जिक्र किया है. आग को लेकर कंपनी की मंशा भी ठीक नहीं है. कंपनी चाहती है कि आग की वजह से ज्यादा से ज्यादा जमीन असुरक्षित घोषित हो जाये.