फिर इन भवनों में संसाधन और मैन पावर भी बड़ा मसला है. आम तौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर तो खड़ा कर दिया जाता है, लेकिन उसका सदुपयोग नहीं किया जाता. मशीने जंग खाने लगती है. अधिकारी-कर्मियों का रोना रोया जाता है. धीरे-धीरे इमारतें खंडहर में तब्दील होने लगती है.
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इन भवनों से बदलेगा स्वास्थ्य विभाग का चेहरा
धनबाद: जिले में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ अच्छे काम हो रहे हैं. खास कर ये जो भवन बन रहे हैं अगर उसमें संबंधित विभाग सही तरीके से काम करने लगे तो लोगों को बहुत लाभ होगा. स्वास्थ्य विभाग का चेहरा भी बदलेगा. हालांकि काम की रफ्तार धीमी है. इन भवनों का निर्माण 2014 तक […]
धनबाद: जिले में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ अच्छे काम हो रहे हैं. खास कर ये जो भवन बन रहे हैं अगर उसमें संबंधित विभाग सही तरीके से काम करने लगे तो लोगों को बहुत लाभ होगा. स्वास्थ्य विभाग का चेहरा भी बदलेगा. हालांकि काम की रफ्तार धीमी है. इन भवनों का निर्माण 2014 तक पूरा कर देना था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
जो काम शुरू नहीं हुए
ट्रॉमा सेंटर का निर्माण के लिए वर्ष 2011-12 में 80 लाख मिले, लेकिन काम नहीं शुरू हुआ.
मेडिसिन, गायनी, ऑर्थो व सजर्री के आधुनिकीकरण के लिए डेढ़ करोड़ मिले, लेकिन काम नहीं शुरू हुआ.
कैथ लैब के लिए एक करोड़ रुपये मिले, लेकिन काम नहीं शुरू हुआ.
वायरल लैब के लिए दो करोड़ मिले, लेकिन काम नहीं शुरू हुआ है.
लाइब्रेरी में कुछ काम बाकी है. ऑडिटोरियम में भी छोटा-मोटा काम रह गया है. कैजुअलिटी का काम अंतिम चरण में है. इंजीनियरिंग सेल को काम में और तेजी लाने को कहा गया है.
डॉ पीके सेंगर, अधीक्षक, पीएमसीएच.
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