लेकिन माडा के पास उसका 31 माह का वेतन बकाया है. भविष्य निधि (पीएफ) की रकम है. दोनों में से कोई एक मिल जाये तो वह बाप होने का फर्ज तो निभा पायेगा. बेटे को बचाने में जीवन भर की कमाई झोंक देगा. लेकिन प्रशासन से लेकर माडा तक कोई उसकी नहीं सुन रहा.
सोमवार को दुखन एमडी डॉ रविंद्र सिंह से मिला और दुखड़ा सुनाया. काफी हाथ-पांव जोड़ने के बाद उन्होंने नियमित वेतन के अलावा एक माह का अतिरिक्त वेतन देना स्वीकार किया . इससे तो पुत्र को लेकर वेल्लोर जाने में रास्ते का खर्च भी पूरा नहीं होगा. एमडी के पास से निराश लौटा दुखन कोरंगा का रो-रो कर बुरा हाल है. उसका कहना है कि किस काम की उसकी कमाई जो बेटे की जान को बचाने में भी काम न आये. उचित इलाज के अभाव में वह 2009 में अपने एक बेटे 21 वर्षीय तपन को वह गवां चुका है. उसे खेलने के दौरान सिर में चोट लगी थी.