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माडा को बीसीसीएल से मिला 174 करोड़

धनबाद: बीसीसीएल ने बाजार फीस के मद में खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार (माडा) को 173 करोड़, 75 लाख, 65 हजार रुपये का भुगतान कर दिया. चेक मंगलवार को माडा के कोष में जमा किया गया. हालांकि बाजार फीस के मद में माडा का दावा लगभग चार सौ करोड़ का है. आर्थिक बदहाली ङोल रहे माडा […]

धनबाद: बीसीसीएल ने बाजार फीस के मद में खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार (माडा) को 173 करोड़, 75 लाख, 65 हजार रुपये का भुगतान कर दिया. चेक मंगलवार को माडा के कोष में जमा किया गया.

हालांकि बाजार फीस के मद में माडा का दावा लगभग चार सौ करोड़ का है. आर्थिक बदहाली ङोल रहे माडा के लिए यह रकम संजीवनी से कम नहीं है. माडा की हालत फिलहाल यह है कि वह अपने कर्मचारियों को नियमित वेतन तक नहीं दे पा रहा है. पिछले आठ साल से इस राशि की प्रतीक्षा कर रहे माडा कर्मियों में इस खबर से खुशी की लहर दौड़ गयी है. उन्हें उम्मीद है कि अब उनके लिए अच्छे दिन आ जायेंगे.

खर्च के लिए सरकार से लिया जायेगा दिशा निर्देश : एमडी

माडा एमडी रविंद्र सिंह का कहना है कि बीसीसीएल से मिली रकम किस मद में खर्च हो इसके लिए सरकार से दिशा निर्देश मांगा जायेगा. भुगतान के लिए सबसे पहले बीसीसीएल सीएमडी टीके लाहिड़ी के प्रति आभार प्रकट करूंगा. बिना उनकी पहल के यह संभव नहीं हो पाता. कोर्ट के इस आदेश से न केवल बकाया मिलेगा बल्कि बाजार फीस के मद में बीसीसीएल सहित अन्य कंपनियों से सलाना एक हजार करोड़ की आय होगी जो माडा के दिन पलटने में काफी सहायक होगी.

एमडी का आभार

राशि लेने में एमडी रविंद्र सिंह ने जो मेहनत की, उसके लिए हम उनके आभारी हैं. अब जैसे राशि मिली है वैसे ही कर्मियों के दुर्दिन भी दूर करने में वह हमारी मदद करेंगे. इसकी पूरी उम्मीद है. डीएन दुबे, संयोजक, प्राधिकार कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति.

क्या है बाजार फीस

वर्ष 2006 में सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर कोयला सीमेंट, हार्ड कोक भट्ठा, फायर ब्रिक्स, रोलिंग मिल, बालू ,स्टोन क्रशर सहित विभिन्न 11 उद्योगों पर अपनी कमाई का एक प्रतिशत बाजार फीस माडा को देने का आदेश दिया था. यह अध्यादेश अभी पूरी तरह लागू भी नहीं हुआ था कि छह माह बाद ही कई उद्योगों ने इसके खिलाफ न्यायालय में याचिका दायर की और इस अपने ऊपर ज्यादती बताया. इसके बाद इस मद में राशि वसूली पर रोक लग गयी. लेकिन केस में न जाने वाली एक कंपनी बीसीसीएल संबंधित अध्यादेश के आलोक में रकम काट कर एक अलग कोष में जमा करती रही.

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