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‘17 रुपये में रोज बेबस जिंदा आदमी’

धनबाद: कोयला के रूप में मिले ‘काला हीरा’ जैसी खनिज संपदा ने धनबाद जिले के अर्थतंत्र को वह ऊंचाई दी, जो उसके समकालीन देश के शायद ही किसी जिले को मिली हो. त्रसदी यह कि धनबाद में जहां हर साल करोड़ों-अरबों का कोयला कारोबार होता है और अमीरों की एक फौज बसी हुई है, वहीं […]

धनबाद: कोयला के रूप में मिले ‘काला हीरा’ जैसी खनिज संपदा ने धनबाद जिले के अर्थतंत्र को वह ऊंचाई दी, जो उसके समकालीन देश के शायद ही किसी जिले को मिली हो. त्रसदी यह कि धनबाद में जहां हर साल करोड़ों-अरबों का कोयला कारोबार होता है और अमीरों की एक फौज बसी हुई है, वहीं एक बड़ी आबादी मौलिक सुविधाओं से वंचित है.

यह चिंतन गुरुवार को प्रभात खबर ऑफिस में आयोजित कविता पाठ सह विचार गोष्ठी में उभर कर सामने आया. पिछले एक दशक से कोयलांचल के गुलगुलिया समुदाय के बीच काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता अनिल पांडेय की कविताओं के पाठ को लेकर शुरू विचार गोष्ठी में शामिल धनबाद के प्रबुद्ध वर्ग ने कोयलांचल की उस कालिमा पर चिंतन किया, जो ‘चिराग तले अंधेरा’ जैसी है.

श्री पांडेय ने ‘‘नक्सलवाद को छूती गुलगुलिया कविताएं’’ शीर्षक से तैयार 18 कविताओं का पाठ किया. श्री पांडेय की कविताओं की ‘‘नक्सलवाद की बात/जानता हूं गैरकानूनी है/वैसे, खांटी कांग्रेसी हूं/गांधीवाद चिल्लाना आदत है/मगर, गांधी मूर्ति के समक्ष/भीख मांगती गुलगुलिया बच्चियों/हाकिम की वादाखिलाफी से/हताश गुलगुलिया बस्तियां/17 रुपये में रोज बेबस जिंदा आदमी/अरबपतियों की बढ़ती संख्या..देना हो उजाला पूरी रात के लिए/तब बातें करना रोशनी की..समाज और किताब के बताये रास्तों पर/मुखौटा चढ़ाये हत्यारे खड़े हैं…’’ आदि पंक्तियों के बाद शुरू हुई विचार गोष्ठी.

बड़ी-बड़ी बातें नहीं, सामने आकर काम भी करना होगा : गोष्ठी में आवकाश प्राप्त आइएस अधिकारी व कहानीकार श्रीराम दुबे ने कहा कि ‘कविताओं में आक्रोश है. जिस दिन गुलगुलियों के बच्चे श्री पांडेय की कविताओं के आक्रोश को आत्मसात करेगा, उसी दिन कुछ सार्थक होगा.’ जानेमाने अधिवक्ता समर श्रीवास्तव ने कहा-‘हम सफेदपोश जमा होकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, मगर कुछ करते नहीं. शासन-प्रशासन पर बरसने नहीं, आगे बढ़कर कुछ करना होगा.’

युवा कवि अनिल कुमार ने कहा कि ‘समाज के हाशिये के बाहर खड़े वंचितों को समाज की परिधि में लाने की दिशा में गंभीर प्रयास के लिए प्रेरित करती हैं श्री पांडेय की कविताएं.’ युवा लेखक अभिषेक कश्यप ने कहा कि ‘कविता की चमक, सूक्ष्मता कहीं-कहीं है. कौंध की तरह हैं. पूरी दुनिया में गांधी और माओवाद को लेकर द्वंद्व हैं. समर श्रीवास्तव जी ने जो कनफेस किया है, वह बहुत बड़ी बात है. लोग अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करते. वंचितों के विकास में सरकार की भूमिका तो है. हम सब मिल कर प्रेशर ग्रुप के रूप में काम कर सकते हैं.’

नक्सलवाद नहीं, गांधीवाद की राह : बियाडा के पूर्व अध्यक्ष व समाजसेवी विजय कुमार झा ने कहा कि ‘सरकार की असहनशीलता और असंवेदशीलता के कारण वंचित वर्ग आज गांधी से ज्यादा, गण और नेशन से ज्यादा नक्सल को जानने लगा है. उनके अस्तित्व को नकारा जा रहा है. हम भी असंवेदनहीन हो गये हैं.’ तैयब खान ने कहा कि ‘श्री पांडेय की कविताओं में दो बातें है गांधी और चारू मजुमदार. आक्रोश है. केवल शब्दों में आक्रोश प्रकट करने से कुछ नहीं होगा. उस आक्रोश को इंकलाब में बदलना होगा. कविता में सच्चई है, यथार्थ है.’ अनंत नाथ सिंह ने कहा कि ‘कविता में आक्रोश है.

प्रशासनिक पदाधिकारी निशाने पर हैं.’ अरूण सिंह ने कहा कि ‘उपेक्षितों को कविता के माध्यम से नक्सलवाद की ओर नहीं, गांधीवाद की ओर ले जाने की जरूरत है. समाज श्री पांडेय के साथ है. हमलोग एक बच्चे को गोद लें. इसमें सभी को शामिल करें.’ गोष्ठी में कवि दिलीप चंचल, सामाजिक कार्यकर्ता विश्वनाथ बागी, जिला चेंबर के अध्यक्ष राजीव शर्मा, शिक्षाविद् आरएन चौबे, प्रमोद झा, हास्य कवि बंसत जोशी, राजेश अनुभव आदि ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किये.

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