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धनबाद में आज हैं शक्ति के कई केंद्र

धनबाद: ‘‘बीती सदी के 70 के दशक के धनबाद और आज के धनबाद में काफी बदलाव आया है. उत्तर आधुनिकता के परिपेक्ष में विखंडन हुआ है. पहले आबादी कम थी. आज बढ़ गयी है. राजनीति में बिखराव आया है. पहले राजनीति का एक केंद्र हुआ करता था. अब कई केंद्र हैं.’’ यह कहना है कहानीकार […]

धनबाद: ‘‘बीती सदी के 70 के दशक के धनबाद और आज के धनबाद में काफी बदलाव आया है. उत्तर आधुनिकता के परिपेक्ष में विखंडन हुआ है. पहले आबादी कम थी. आज बढ़ गयी है. राजनीति में बिखराव आया है. पहले राजनीति का एक केंद्र हुआ करता था. अब कई केंद्र हैं.’’ यह कहना है कहानीकार नारायण सिंह का.

करीब साढ़े चार दशक के दौरान धनबाद के समाज में हुए परिवर्तन के साक्षी रहे श्री सिंह बढ़ती हिंसा और रंगदारी से चिंतित हैं. श्री सिंह की माने तो पहले धनबाद कोयलांचल में एक शक्तिशाली हुआ करता था. अब शक्ति के, सत्ता के कई केंद्र बन गये हैं. कतरास में कोई रंगदारी वसूल रहा है, तो बाघमारा में कोई और. हिंसा बढ़ी है. जटिलताएं बढ़ी हैं.

शोषण की परंपरा घटी है : श्री सिंह कहते हैं-‘‘चार दशक पूर्व के धनबाद और आज के धनबाद में एक अच्छी बात यह है कि पहले की अपेक्षा शोषण कम हुआ है. मजदूर वर्ग पहले की तुलना में आज ज्यादा जागरूक है. हां, आज के धनबाद में मीडिया भी काफी शक्तिशाली हुई है, जो बहुत बड़ा बदलाव है. पहले इतनी पावरफुल मीडिया नहीं थी.’’

कोयला उद्योग का पहिया पीछे घुमा : श्री सिंह कहते हैं-‘‘बीते चार दशक के दौरान धनबाद कोयलांचल के कोयला उद्योग का मूल्यांकन करें, तो कोयला उद्योग का पहिया पीछे की ओर घुमा है. बीती सदी के 70 के दशक की शुरूआत होते ही कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण हो गया. तीन-साढ़े तीन दशक बाद आज कोयला उद्योग का पहिया फिर से पीछे की ओर घुमा है. कोयला उद्योग में बढ़ता आउटसोर्सिग इसका प्रमाण है. पहले कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण हुआ, अब निजीकरण हो रहा है.’’

अखबार पर जिंदा हैं नेता : श्री सिंह कहते हैं-‘‘आज कोयला उद्योग में प्रबंधन मजबूत हो गया है, श्रमिक संगठन कमजोर. श्रमिक नेता निजी स्वार्थ साधने लगे हैं. नेता बोल कर कोयलांचल में आज कुछ नहीं बचा है. वह राजनीतिक दल हो या फिर ट्रेड यूनियन दोनों के नेता सिर्फ अखबार पर जीवित हैं. जन आंदोलन और वामपंथी अांदोलन की धार कुंद हुई है. वामपंथी राजनीति विखराव पर है. कई पार्टियों, गुटों में बंटी हुई है. एकता नहीं है. नेतृत्व की दूसरी कतार नहीं है. व्यक्तिवाद बढ़ा है. साहित्य और किताबें हाशिये पर हैं. नौकरशाह असधारण रूप से मजबूत हुए है. न कोई कार्यशैली है और न ही कार्यनीति. प्रदूषण बढ़ गया है. भ्रष्टाचार बढ़ गया है. यह बंद होना चाहिए.’’

बेहतर कल की उम्मीद : श्री सिंह कहते हैं-‘‘इन सबके बाद भी धनबाद के लिए बेहतर कल की उम्मीदें खत्म नहीं हुई हैं. धनबाद और बेहतर हो सकता है, लेकिन वर्तमान पद्धति से नहीं. और धनबाद के सामने जो सारी चुनौतियां दिख रही हैं, उसमें झारखंड प्रदेश और देश के वर्तमान राजनीतिक सिस्टम का खासा प्रभाव है. झारखंड में तो सारा राजनीति नेतृत्व ही दिशाहीन हो चुका है. देश के हालात भी अच्छे नहीं. वर्तमान सिस्टम को उखाड़े बिना विकास या बदलाव संभव नहीं है. वोट से बदलाव नहीं होगा. नक्सली कभी विकल्प हो सकते थे लेकिन अब नहीं हैं. जनवादी आंदोलन को खड़ा करना होगा. यह हिंसक भी हो सकता है.’’

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