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कभी ‘आग’ पर हरियाली लाने को थे मशहूर, आज झरिया छोड़ने को मजबूर

झरिया: झरिया चार नंबर स्थित सब्जी बागान का इलाका बारहों महीने हरा-भरा रहता है. धरती के नीचे आग और ऊपर हरियाली केवल यहीं देखा जा सकता है. लेकिन दुर्भाग्य है कि झरिया सब्जी बागान के किसानों की आर्थिक स्थिति डावांडोल हो गयी है. बाहर से लोग खदानों में काम करने के लिए यहां आये. घर […]

झरिया: झरिया चार नंबर स्थित सब्जी बागान का इलाका बारहों महीने हरा-भरा रहता है. धरती के नीचे आग और ऊपर हरियाली केवल यहीं देखा जा सकता है. लेकिन दुर्भाग्य है कि झरिया सब्जी बागान के किसानों की आर्थिक स्थिति डावांडोल हो गयी है. बाहर से लोग खदानों में काम करने के लिए यहां आये. घर का मुखिया यदि खदानों में काम किये तो अन्य सदस्य खेती में जुटे रहे. या फिर जिसे काम नहीं मिला, वह खेती करने लगे. यहां की सब्जी से पूरी झरिया चलती थी. लेकिन इनके पास अब केवल अभाव ही दिखता है.

पैसे के अभाव में एक तरफ उन्नत बीज, खाद, कीटनाशक वे खरीदने के काबिल नहीं हैं. तो पक्का नाली नहीं बनवा पाते हैं. खेतिहर मजदूरों का भी अभाव झेल रहे किसान खेती के सामानों के दामों में बेतहाशा वृद्धि ने भी खेती को प्रभावित किया है. महंगाई व कर्ज की मार झेल रहे किसान यहां से पलायन को मजबूर हैं. उनमें किसान ओमप्रकाश कुशवाहा, दिनेश प्रसाद, स्वामीनाथ कुशवाहा, प्रभुनाथ प्रसाद, सुरेंद्र प्रसाद, तारकेश्वर कुशवाहा आदि प्रमुख हैं.

झरिया व आसपास के क्षेत्रों में लगभग पांच सौ एकड़ भूमि में कृषि कार्य होता है जो सरकारी उपेक्षा का शिकार है. झरिया प्रखंड कार्यालय वर्ष 2006 में बंद हुआ. उसके बाद से चार नंबर सब्जी बागान में किसी भी प्रखंड कृषि पदाधिकारी को नहीं देखा गया. चार नंबर सब्जी बागान के किसानों ने बातचीत के क्रम में बताया कि यहां के हालात काफी बदतर हो गये हैं. इस कारण वे अब अपने देस जाने को विवश हो रहे हैं.

कृषि पदाधिकारी की पदस्थापना नहीं है : सीओ
इस संबंध में झरिया सीओ केदारनाथ सिंह ने कहा कि अंचल कार्यालय में अभी किसी कृषि पदाधिकारी की पदस्थापना नहीं हुई है. इससे किसानों को उचित प्रशिक्षण नहीं दिया पा रहा है. किसान कृषि सुविधाओं से इसी कारण से वंचित
हो रहे हैं.
किसान कर्ज लेकर अपने खेतों में सब्जी उगाते है. जब फसल तैयार होती है तो बाजार में उचित कीमत नहीं मिलती. उसका लाभ किसानों को नहीं मिल पाता. ऐसी स्थिति में किसान अपना कर्ज कहां से चुकायेंगे. तंगी ही पलायन का कारण है.
बिंदेश्वरी प्रसाद यादव
जब झरिया प्रखंड कार्यालय था तो प्रखंड कृषि पदाधिकारी बागानों में घूम-घूम कर किसानों की समस्या सुनते थे. सब्सिडी पर खाद, बीज, कीटनाशक, ऑर्गेनिक खाद आदि किसानों को मुहैया कराते थे. जब से झरिया निगम बना है, किसानों का मरन है.
भरत राय
गोभी, बैगन, टमाटर, भिंडी, नेनुआ(परोर), करैला, धनिया, प्याज आदि का हाईब्रिड बीच पास के निजी बीज भंडारों में मिल तो जाता है, लेकिन किसान पुरानी पद्धति से ही खेती करते हैं. उन्नत बीज के बाद भी समुचित फसल नहीं होती.
शिव मोहन यादव
चार नंबर सब्जी बागान में सिंचाई का साधन झरिया ड्रेन का गंदा पानी है. उसका पानी अपने खेतों में ले जाने के लिए चंदा कर किसानों ने नाला का निर्माण किया है, जोर हर साल बरसात में टूट जाता है. उसकी मरम्मत करने में किसानों को परेशानी होती है.
गोपाल प्रसाद कुशवाहा

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