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जेई टीका को ले अफवाह से विभाग परेशान

धनबाद : जापानी इंसेफ्लाइटिस से जहां बच्चों की जान जा रही है, वहीं इसके बचाव को लेकर टीका लगवाने से लोग दूरी बना रहे हैं. अल्पसंख्यक इलाकों में स्थिति और भी खराब है. यहां अभी तक मात्र 15-20 प्रतिशत बच्चों को ही यह टीका दिया जा सका है. लोगों की बेरुखी के कारण स्वास्थ्य विभाग […]

धनबाद : जापानी इंसेफ्लाइटिस से जहां बच्चों की जान जा रही है, वहीं इसके बचाव को लेकर टीका लगवाने से लोग दूरी बना रहे हैं. अल्पसंख्यक इलाकों में स्थिति और भी खराब है. यहां अभी तक मात्र 15-20 प्रतिशत बच्चों को ही यह टीका दिया जा सका है. लोगों की बेरुखी के कारण स्वास्थ्य विभाग धनबाद के पदाधिकारियों को टारगेट पूरा करने में पसीने छूट रहे हैं. धनबाद में एक माह में 10.13 लाख बच्चों को जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेई) का टीका लगाना था. लेकिन छह माह बाद भी मात्र 2.89 लाख बच्चों को ही टीके लगाये जा सके हैं.
टीका को लेकर अफवाह : अधिकारियों की मानें तो टीका को लेकर लोगों में बेवजह अफवाह फैलायी जा रही है. खासकर अल्पसंख्यक इलाकों में यह देखने को मिल रहा है. लोगों का मानना है कि इससे प्रजनन क्षमता में बाधा पहुंचेगी. बच्चे बड़े होकर प्रजनन क्षमता खो देंगे. इस कारण जब भी स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारी इन इलाकों में टीकाकरण के लिए जा रहे हैं, उन्हें विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
धर्मगुरुओं की ली जायेगी मदद : अफवाह से परेशान स्वास्थ्य विभाग अब अल्पसंख्यक समुदाय के धर्मगुरुओं से मदद की अपील करेगा. विभाग की टीम धर्मगुरुओं से लोगों को टीके का फायदा बताने की अपील करेंगे. इससे लोगों का विश्वास बढ़ेगा. साथ ही ऐसे इलाकों में टीके को लेकर प्रचार-प्रसार भी तेज करने का निर्णय लिया गया है.
जेई को जानें
भारत में 0-3 वर्ष के बच्चों की सबसे ज्यादा मौत का कारण जेई ही है. जापनीज इंसेफ्लाइटिस वायरस से खेतों में पनपने वाले मच्छर संक्रमित हो जाते हैं. इन मच्छरों के काटने से आदमी इससे ग्रसित हो जाता है. बच्चे तेजी से इसके प्रभाव में आते हैं. मच्छर के काटने के पांच से 15 दिनों के बाद ही यह पता चलता है. इसमें सिर दर्द के साथ तेजी से बुखार आता है. इसकी मृत्यु दर 0.3 से 60 प्रतिशत तक होती है. इसका कोई विशेष इलाज भी नहीं है. टीका से ही इसका बचाव संभव है.

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