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बीसीसीएल की खदानों के पिलरों में फंसा है 1800 मिलियन टन कोयला
कोयला खदानों में पिलर आधारित पुरानी खनन तकनीक से खनन होने के कारण विभिन्न कोलियरियों में 3200 मिलियन टन कोयला फंसा है. डिपलरिंग प्रक्रिया के तहत इन खंभों को काट कर बालू की भराई की जाती है. लेकिन देश की तीन रिसर्च संस्थानों ने चार वर्ष में छह करोड़ रुपये की लागत से देशी तकनीक […]
कोयला खदानों में पिलर आधारित पुरानी खनन तकनीक से खनन होने के कारण विभिन्न कोलियरियों में 3200 मिलियन टन कोयला फंसा है. डिपलरिंग प्रक्रिया के तहत इन खंभों को काट कर बालू की भराई की जाती है. लेकिन देश की तीन रिसर्च संस्थानों ने चार वर्ष में छह करोड़ रुपये की लागत से देशी तकनीक विकसित की है.
धनबाद: बीसीसीएल सहित कोल इंडिया लिमिटेड (सीआइएल) की विभिन्न अानुषंगिक कंपनी की खदानों में 3200 मिलियन टन कोयला पिलरों में फंसा हुआ है. इसे निकालने के लिए स्वदेशी तकनीक का उपयोग हो रहा है. केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान (सिंफर) के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये सर्वे में तथ्य उभर कर सामने आये हैं कि कोल इंडिया की सहायक कंपनियों की विभिन्न कोलियरियों के पिलरों में अनुमानत: 96 खरब रुपये मूल्य का करीब 3200 मिलियन टन कोयला फंसा हुआ है, उसमें सर्वाधिक कोयला बीसीसीएल की 55 कोलियरियों में सर्वाधिक 54.15 खरब रुपये का 1800.50 मिलियन टन कोयला फंसा हुआ है.
ऐसे कोयले को सुरक्षित खनन के लिए दुनिया में अब-तक कोई तकनीक नहीं थी. पहली बार भारतीय वैज्ञानिकों ने जमीन की सतह पर स्थित मानवीय व प्राकृतिक संरचना को बिना हटाये तथा बिना क्षति पहुंचाये, इसे निकालने की स्वदेशी तकनीक विकसित की है. केंद्रीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की तीन राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं ने अपने संयुक्त शोध में इसे संभव कर दिखाया है. 54.1इन प्रयोगशालाओं में सिंफर के साथ-साथ केंद्रीय यांत्रिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (दुर्गापुर) तथा केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (रुड़की) शामिल है. मुख्य भूमिका सिंफर की है, जबकि अन्य दो सहयोगी हैं.
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