फ्लैट की बिक्री के समय बिल्डर को सर्विस टैक्स के रूप में 4.5 प्रतिशत भारत सरकार के खाते में और एक प्रतिशत राज्य सरकार के खाते में जमा करना पड़ता है. इस प्रकार कुल 32.50 टैक्स का बोझ वहन करना पड़ता है. सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स एवं वैट का यह बोझ बिल्डर स्वयं वहन करता है और यह ग्राहकों के मूल्य में निहित होता है. उपरोक्त टैक्स पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ नहीं मिलता है.
जबकि जीएसटी में बिल्डर को मात्र 12 प्रतिशत टैक्स ही फ्लैट की बिक्री पर देना होगा और उनके द्वारा निर्मित अपार्टमेंट में इस्तेमाल किये गये अधिकांश बिल्डिंग मेटेरियल पर 28 प्रतिशत की दर से कर देना होगा. जो कर देंगे वह इनपुट टैक्स क्रेडिट के माध्यम से जीएसटी में समाहित होगा. दूसरे शब्दों में उनके द्वारा चुकाये गये कर को भुगतेय कर से सामंजन की सुविधा मिलेगी. जीएसटी लागू होने के बाद लागत में होनेवाली कमी का लाभ ग्राहकों को दिया जाना है. अगर कोई बिल्डर यह लाभ ग्राहकों को नहीं देगा तो वह जीएसटी अधिनियम की धारा 171 के तहत मुनाफाखोरी में कार्रवाई का भागी होगा.