देवघर : किसी भी क्षेत्र की संस्कृति व समृद्धि वहां की नदियों से जुड़ी होती है. मानव सभ्यता का विकास भी नदियों के किनारे हुआ है. लेकिन, कालांतर से नदियों का भरपूर दोहन हो रहा है. बालू का उठाव हो रहा है. कई जगह नदियों की जमीन पर अतिक्रमण किया जा रहा है. नदियों में बोरिंग पर पानी निकाला जा रहा है.
नदियों के संरक्षण पर कोई काम नहीं हो रहा है. नतीजा साफ है, आज नदी रूपी वही जीवनधारा सूख रही है. गरमी के मौसम में हर जगह पेयजल की किल्लत है. नदियाें में भी पानी नहीं है. अगर समय रहते हम नहीं चेते तो आने वाले समय में यह समस्या और भयावह हो जायेगी. नदियों के प्रवाह को रोकना यानी मानव सभ्यता के विकास को रोकना बन जायेगा. ‘मत रोको प्रवाह’ में आज की कड़ी में पढ़ें जयंती नदी पर रिपोर्ट-
अब नहीं उगतीं फसलें, पीने के पानी का भी संकट
पत्थरों व जंगल की अवैध कटाई ने बढ़ाई परेशानी
संजय मिश्रा
भीषण गरमी से प्रखंड क्षेत्र की जयंती नदी पूरी तरह से सूख चुकी है. यह इस इलाके के लिए सबसे महत्वपूर्ण जल स्रोत है. नदी से किसानों का रोजी-रोजगार जुड़ा हुआ है. इसके आसपास बसे गांवों के किसान सब्जी समेत अन्य फसल इसी के भरोसे लगाते रहे हैं. पिछले दशकों में यह इलाका हरा-भरा रहता था. जयंती नदी के पानी से न सिर्फ फसलें उगती थीं बल्कि पीने के पानी की भी कमी नहीं होती थी. अब नदी के सूखने से किसानों को भी काफी परेशानी हो रही है.
कौन-कौन से गांव हैं प्रभावित : मदनकटा, बिरनगड़िया, यशोबान, चंदियाजोरी, जोड़ामो, ढकवा, डहुवा, चौककियारी, बेलकियारी, मांझतर, लक्षनाडीह, आसनसोल, सिंहपुर, बनडबरा समेत दर्जनों गांवों के किसान नदी पर ही निर्भर रहकर खरबूज, खीरा, ककडी, बैंगन, मिरची, झींगा, नेनुआ, भिंडी, कद्दू, करैला, साग आदि फसल लगाते हैं. क्षेत्र के अधिकतर किसान नदी के पानी से ही पटवन करते हैं. यहां लिफ्ट एरिगेशन पूरी तरह से फेल है. डोभा बना कर खेत की पटवन करते हैं. लेकिन अभी पानी की कमी से फसल प्रभावित हो रही है.
जलस्तर लगातार जा रहा नीचे : एक दशक पूर्व नदियों में पर्याप्त पानी बहा करता था. लेकिन अब गर्मी में अब नदियां सूख चुकी हैं. जिसके कारण आसपास के कुएं और तालाब भी सूख गये हैं. जिससे किसानों की परेशानी और बढ़ गयी है. गांवों में पेयजल की सुविधा उपलब्ध नहीं हो रही है. कई किलोमीटर दूर से पीने का पानी लेकर आना पड़ता है.
नदी से हो रहा धड़ल्ले से अवैध बालू उठाव : जयंती नदी से धड़ल्ले से अवैध बालू का उठाव किया जा रहा है. जिसका प्रभाव भी नदी पर पड़ा है. प्रशासन का अंकुश अवैध बालू खनन करने वालों पर नहीं है. पूर्व में बालू खोद कर लोग पानी निकालने का काम करते थे. लेकिन अब नदी में बालू नहीं होने के कारण पानी नहीं निकल पाता है. वन संपदा की अवैध और अंधाधुंध कटाई का असर भी पानी के सूखने का प्रमुख कारण है. पत्थर और जंगल माफिया सक्रिय हैं. सीधे-साधे ग्रामीण उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाते. उनकी शिकायत और विरोध प्रशासन तक नहीं पहुंच पाता. या फिर अनसुना कर दिया जाता है. बालू के उठाव से नदी में मिट्टी नजर आ रही है. जिससे पानी का कहीं पता नहीं है.