संताल : परगना की नदियां यहां की लाइफ लाइन है. यहां के लोगों की संस्कृति, परंपरा व कई मान्यताओं से जुड़ी हैं. इनसे लोगों का दाना-पानी चलता है. क्योंकि इस इलाके के खेतों को पानी इन्हीं नदियों से मिलता है. शहर से लेकर गांव तक के लोगों की प्यास भी यही बुझाती हैं. वर्तमान स्थिति को देखें तो नदियां अपना अस्तित्व बचाने को जद्दोजहद कर रही हैं. इनके गर्भ में पानी रखने की क्षमता है. यह क्षमता नदियों को बालू से मिलती है.
प्राय: सभी नदियों से बालू युद्ध स्तर पर निकाला जा रहा है. इस कारण साल दर साल संताल की नदियों का जलस्तर नीचे जा रहा है. नदियों के संरक्षण की दिशा में कोई काम नहीं हो रहा है, उल्टे इनका दोहन हो रहा है. जानकारों के अनुसार नदियों का संरक्षण नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में स्थिति और भयावह हो जायेगी. किसानों के खेतों को पानी तो दूर, लोगों को पीने का पानी तक नसीब नहीं होगा. प्रभात खबर ने संताल की नदियों की स्थिति की पड़ताल शुरू की है. पहली कड़ी में प्रस्तुत है देवघर में बहने वाली ‘अजय नदी’ पर
मिथिलेश कुमार सिन्हा
कभी सालों भर पानी से भरी रहने वाली अजय नदी का आज बुरा हाल है. सारठ प्रखंड के बड़े इलाके में बहने वाली अजय नदी के किनारे खेतों मे हरियाली गायब हो गयी है. किसान तीन फसलें लगाना छोड चुके हैं. इसके बेतरतीब दोहन का ही परिणाम है कि फरवरी आते आते अजय नदी सूख जाती है. बन्दाजोरी से लेकर बस्की तक पानी की एक बूंद नही है. नदी में पानी कम होने से किसानों के साथ पशुओं के लिए भी बड़ी समस्या हो चुकी है. आम लोगों के जीवनोपयोगी कार्य के लिए पानी की कमी परेशानी का सबब है.
इन गांवों के किसानों एवं अन्य लोगो को परेशानी: आसाहना,बसवरिया, तैलरीया, सरपत्ता, रानीगंज,बेलाबाद, सारठ, परसबोनी, महापुर, चरकमारा, सधरिया, लकड़ाखोदा, बरमसिया, बस्की, तलझारी,बामनगामा, दुन्वाडीह, जिरूलिया, पारटांड, नावाडीह समेत दर्जनो गांवों के किसानों के साथ-साथ पशुओं को पानी के लिए मारामारी करना पड़ रही है. किसानों के सैकड़ों एकड़ खेत बंजर बनते जा रहे हैं. इन गांवों में पेयजल और सिंचाई की समस्या उत्पन्न हो गयी है. लोग पीने के पानी के लिये कई किलोमीटर दूर जाते हैं. मई-जून के महीनों में तो स्थिति ज्यादा विकट हो जाती है. जिस साल बारिश नहीं हुई उस साल लोगों को परेशानी ज्यादा झेलनी पड़ती है. पशुओं के चारे व पानी के संकट का भी सामना करना पड़ता है.
बालू के अवैध उठाव से बढ़ी परेशानी : अजय नदी का दोहन बालू माफियाओं के द्वारा हर रोज किया जा रहा है. नित्य हजारों ट्रैक्टर बालू का अवैध उठाव हो रहा है. सरकार बालू माफियाओं पर लगाम लगाने के लिये कारगर प्रयास नहीं कर रही है. दूसरी तरफ पहाड़ों को अवैध ढंग से काटा जा रहा है. इसकी वजह से भी नदियां सिमट रही हैं. बालू व पत्थर माफिया पर सरकार नकेल नहीं कस पा रही है.
इसकी वजह से माफिया और सरकारी तंत्र व नेताओं का गंठजोड़ है. आम लोग अगर इसके खिलाफ कोई आंदोलन करते हैं तो उसे या तो अनसुना कर दिया जाता है या फिर तोड़ दिया जाता है. इससे इलाके के लोगों में सरकारी तंत्र के प्रति आक्रोश पनप रहा है.
क्या कहते हैं किसान
पहले अजय के किनारे हरी सब्जी लगाते थे. अब पानी नहीं रहने के कारण लगाना छोड़ चुके हैं.
दशरथ महतो
अजय नदी के किनारे के खेत बावजूद बंजर हैं. पानी फरवरी में ही सूख जाता है. जिससे परेशानी होती है.
चांदो मंडल
अजय नदी का दोहन नहीं रुका तो फरवरी क्या नवंबर मे पानी नहीं रहेगा. आनेवाले समय में और ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ेगी. राजेश राजहंस