पूर्णिमा के एक दिन पूर्व मंगलवार को व्रती क्षौर कर्म कर के यज्ञोपवित नव वस्त्र धारण कर अनाहार रह कर रात्रि में कर्णेश्वर मंदिर द्वार पर लंबा दंड देते हुए धर्मराज मंदिर में हाजिर होकर प्रथम पूजा में सम्मलित हुए. पंडित हराधन शर्मा व परेश शर्मा द्वारा बाबा धर्मराज का विधिवत पूजा अर्चना कर व्रती पूजा के अनंतर थोड़ा प्रसाद पाकर वहीं ब्रह्मचारी वेश में शयन को जाते हैं. ढोल-ढाक की आवाज से मंदिर परिसर व आसपास भक्तिमय हो गया है.
आज भोक्ता फिर दंडवत होकर मंदिर पहुंचेंगे. साथ ही महिला भोक्ता भी सिर पर मिट्टी के बरतन में अग्नि लेकिर महिला मंदिर आयेगी. फिर चड़क पूजा की जायेगी. इस दौान चड़क पर चढ़कर झूलते हुए भोक्ता पुष्प बरसायेंगे. इसे आशीर्वाद मानकर पुष्प पाने की होड़ मची रहती है. अपनी आस्था का प्रदर्शन करते हुए में कांटों पर खुले बदन लोटने, अग्नि पर चलना, अंगारों पर दौड़ने का हैरअंगेज कारनामा दिखा कर भी अपनी आस्था दिखायेंगे.