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गांधी की खादी से दूर हो रही नयी पीढ़ी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और उनकी खादी का जो क्रेज स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के बाद के कुछ वर्षों तक रहा. वह क्रेज आज के माॅडर्न परिवेश में घटता जा रहा है. ऐसा नहीं है कि खादी को प्रोमोट करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें ठोस पहल नहीं कर रही है. ठोस पहल भी हो […]
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और उनकी खादी का जो क्रेज स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के बाद के कुछ वर्षों तक रहा. वह क्रेज आज के माॅडर्न परिवेश में घटता जा रहा है. ऐसा नहीं है कि खादी को प्रोमोट करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें ठोस पहल नहीं कर रही है.
ठोस पहल भी हो रहा है. देश का शायद ही कोई जिला, अनुमंडल ऐसा होगा जहां खादी ग्रामोद्योग भंडार नहीं होगा. लेकिन खादी धीरे-धीरे राजनेताओं से तो दूर हो ही रही है आम लोग भी खादी को ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं. इसके कई कारण हैं. एक तो यह है कि कुटीर उद्योग जिसमें चरखा से सूत कातने की परंपरा थी, अब लगभग समाप्तप्राय है. क्योंकि उसकी जगह आधुनिक चरखे ने ली है. लेकिन जब खादी बिकेगा नहीं, खादी लोग पहनेंगे नहीं तो भला खादी का उत्पादन करने वाले कामगार क्यों खादी का वस्त्र बनायेंगे. देवघर सहित संताल परगना में कई जिले ऐसे हैं जहां आज भी गांधी जी का चरखा तो मिल जायेगा लेकिन चरखे से सूत कातने वाले नहीं मिलेंगे, क्योंकि खादी के घटते क्रेज के कारण इस धंधे से जुड़े लोग अन्य रोजागर से जुड़ रहे हैं. गांधी जी की पुण्यतिथि को शहीद दिवस के रूप में याद करते हुए प्रभात खबर ने गांधी जी की खादी की पड़ताल की. प्रस्तुत है यह विशेष रिपोर्ट :
देवघर : खादी को लोकप्रिय बनाने में महात्मा गांधी का बहुत बड़ा योगदान रहा है, लेकिन गांधीजी की खादी से आज की युवा पीढ़ी दूर होती जा रही है. तब से लेकर अबतक खादी के क्षेत्र में काफी बदलाव हुए हैं. नेताओं की पहली पसंद खादी आज भी है, लेकिन यह नयी पीढ़ी को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पा रही है. हालांकि खादी वस्त्रों को आधुनिक लुक देने व आकर्षक बनाने की लगातार कोशिश की जा रही है तथा इस पर युवाओं की नजर है. देवघर में खादी ग्रामोद्योग बोर्ड का कैंप कार्यालय होने के बाद भी यहां खादी का व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं दिख रहा है. स्थिति यह है कि खादी की दुकानों में इक्का-दुक्का ग्राहक ही नजर आते हैं.
विशेष अवसरों पर होती है डिमांड
देवघर में खादी ग्रामोद्योग बोर्ड व खादी आयोग द्वारा आयोजित मेला व विशेष अवसरों पर खादी वस्त्रों की अच्छी बिक्री होती है. हालांकि खरीदारों में राजनेताओं की संख्या अधिक होती है. राजनीति से जुड़े नेताओं की पहली पसंद आज की खादी वस्त्र ही हैं.
देवघर में प्रतिमाह तैयार होते हैं एक हजार से ज्यादा शर्ट
छत्तीसी स्थित खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड कैंप कार्यालय परिसर में खादी का प्रोडक्शन सेंटर है, जहां प्रत्येक माह 25 महिलाएं आधुनिक मशीनों के जरिये सिलाई का काम जारी रखते हुए 1000 से भी ज्यादा खादी के शर्ट तैयार करती हैं. उस पर जोहार ब्रांड का लेबल लगने के बाद केंद्रीय वस्त्रागार, रांची को भेज दिया जाता है.
सूत कताई से विमुख हो रहे लोग
जिले में सूत कटाई व बुनाई का काम काफी कम हो गया है. संताल परगना ग्रामोद्योग समिति, देवघर के प्रधान कार्यालय के मंत्री भीम राय बताते हैं कि जिले में चरखा व करघा का प्रयोग बहुत कम होता है. हालांकि जिले के अंधरीगादर, रोहिणी, मोहनपुर, सारठ, पालोजोरी, मधुपुर में ग्रामोद्योग समिति का अपना जमीन व मकान है. जो भी चरखा व करघा हैं वो काफी जर्जर हो चुके हैं. अगर भारत सरकार या खादी ग्रामोद्योग आयोग इस जिले में आधुनिकतम चरखा व करघा उपलब्ध कराये तो जिले में रहने वाले लगभग 1000 की संख्या वाले बुनकर व कतीन(कामगार) प्रत्येक वर्ष 50 लाख के खादी वस्त्रों का उत्पादन करने की क्षमता रखते हैं. देवघर में टावर चौक, जमुनाजोर व छत्तीसी में खादी का सेल सेंटर है.
श्री राय ने बताया कि उन्हें खादी इंडिया अभियान की बहुच ज्यादा जानकारी नहीं है, क्योंकि उससे जुड़े कोई विशेष निर्देश हमें नहीं मिला है. हां शहरी क्षेत्र के कुछेक चौक-चौराहों में खादी इंडिया से जुड़े होर्डिंग व बैनर देखे हैं. जबकि समिति के गोड्डा, साहिबगंज व दुमका जिला में स्थिति उत्पादन केंद्र में खादी वस्त्रों का काफी उत्पादन होता है. समिति द्वारा निर्मित सिल्क खादी की सप्लाई हरियाणा, यूपी व जम्मू-कश्मीर में की जाती है. समिति की अोर से चलायी जा रही समृद्धि योजना के तहत प्रमंडल के अंतर्गत 200 से ज्यादा कतीन व बुनकरों को विभिन्न ट्रेड (सूत कटाई, बुनाई,कढ़ाई व सिलाई) में प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे आधुनिक खादी तैयार कर पीएम के खादी इंडिया के सपने को साकार करने की दिशा में लगातार मेहनत कर रहे हैं.
युवाअों काे आकर्षित करने की जरूरत
वर्तमान में खादी को आधुनिक लुक देने की कोशिश की जा रही है. इस पर युवाओं की नजर है. कॉलेज जाने वाले छात्र-छात्राएं जींस के साथ खादी का कुरता व शर्ट पहनना पसंद तो करते हैं लेकिन उसकी आदत नहीं बना पा रहे हैं. कहने का अर्थ है कि विशेष अवसरों पर ही खादी वस्त्रों को पहनते हैं. आजकल के युवा मोटे कपड़े वाले खादी के पैंट (आठ प्लाई वाले) का भी उपयोग कर रहे हैं. ऐसे में युवाओं को खादी के प्रति दिलचस्पी जगाने के जरूरत हैं.
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