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नारीवादी विचार जनांदोलन का रूप नहीं ले सका : डॉ अच्यूतानंद

देवघर: देवघर पुस्तक मेला परिसर में सोमवार को ‘महिला सशक्तिकरण’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता सीनियर डीएससी डॉ अच्यूतानंद झा व धनबाद रेलवे के सीनियर डीइइ दिनेश साह शिरकत कर रहे थे. मुख्यवक्ता डॉ अच्यूतानंद ने कहा कि महिलाओं के हितों में कई अधिनियम व कानून बने हैं. फिर […]

देवघर: देवघर पुस्तक मेला परिसर में सोमवार को ‘महिला सशक्तिकरण’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता सीनियर डीएससी डॉ अच्यूतानंद झा व धनबाद रेलवे के सीनियर डीइइ दिनेश साह शिरकत कर रहे थे. मुख्यवक्ता डॉ अच्यूतानंद ने कहा कि महिलाओं के हितों में कई अधिनियम व कानून बने हैं.

फिर भी महिलाओं पर अत्याचार, बलात्कार, घरेलु हिंसा, प्रताड़ना जैसे अपराध के आंकड़े कम नहीं हो रहे हैं. उन्होंने महिलाओं की तुलना पुरुषों से की. डॉ झा ने कहा कि नारी सशक्तिकरण के लिए नारीवादी विचार कभी जनआंदोलन का रूप नहीं ले सका, न ही भारत में और न ही यूरोप में. इसका इतिहास केवल प्रयासों का इतिहास रहा है. सबसे पहले 2001 में भारत में सफल रूप से महिला सशक्तिकरण का स्वरूप उभर कर सामने आया.

अादिवासी महिलाओं से सीखें : दिनेश साह
दूसरे मुख्यवक्ता ने दिनेश साह ने कहा कि हम पहले व्यवस्था में बुरइयां लाते हैं और फिर उससे त्रस्त होकर उसे दूर करने की बात करते हैं. यही सच्चाई है. उन्होंने आदिवासी महिलाओं से नारी को सशक्त होने की प्रेरणा ग्रहण करने की बात कही. कार्यक्रम में वार्ड पार्षद रीता चौरसिया ने कहा कि नारी के सशक्त नहीं होने के लिए महिलाएं ही जिम्मेवार हैं. अधिवक्ता सुचित्रा झा ने कहा कि सारी शक्ति पुरुषों के हाथ में है. वहीं स्मृति बसु ने कहा कि नारी को पहले समझना होगा. अपने अंदर छिपी शक्ति को उभारना ही नारी सशक्तिकरण का सच्चा अर्थ होगा. पूजा श्रीवास्तव ने कहा कि कानून तो बने हैं लेकिन वे कारगर नहीं हैं. मारवाड़ी महिला संघ की राधा अग्रवाल ने कहा कि पूरी स्वतंत्रता के साथ महिला निर्णय अपने ले, वही उनकी शक्ति होगी. बबीता सिन्हा ने कहा कि महिला सशक्तिकरण की सबसे बड़ा झंझट, लोगों की माइंड सेट का परिणाम है. संगीता सुल्तानिया ने कहा कि पहले लड़कों को सुशिक्षित, संस्कारित करना होगा. उन्हें यह सिखाना होगा कि नारी भोग की वस्तु नहीं है. छात्रा प्रेरणा कुमारी ने कहा कि लड़कों को अधिक पढ़ायें ताकि वे लड़कियों की इज्जत करना सीखें. लड़कियों की पहरेदारी से पहले मुक्ति पानी होगी. इस अवसर पर मोती लाल द्वारी, सरस्वती झा, अर्चना भगत ने अपनी बेवाक राय रखी. मंच संचालन देवघर कॉलेज की प्राध्यापिका डॉ अंजनी शर्मा ने की. कार्यक्रम के दौरान मंचासीन वक्ताओं व अतिथियों को ज्ञानपीठ की ओर से स्मृति चिन्ह, प्रमाण पत्र व एक-एक पुस्तक सम्मान स्वरूर दिया गया. ज्ञानपीठ के मैनेजर उत्तम बनर्जी ने सबों को सम्मानित किया. धन्यवाद ज्ञापन प्रो रामनंदन सिंह ने किया. इस अवसर पर मीडिया प्रभारी उमाशंकर राव उरेंदु मौजूद थे.

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