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आधुनिक विकास की दौड़ में पर्यावरण पर खतरा

मधुपुर : बावन बीघा स्थित स्वयं सेवी संस्था संवाद परिसर में आयोजित दो दिवसीय सांस्कृतिक समागम ‘झारखंड जतरा’ का शुक्रवार को रंगारंग कार्यक्रम के बीच संपन्न हुआ. झारखंड जतरा में हरियाड झारखंड, दिशोम चिगलपहडी, फुलो झानो टीम बनकाटी लोटा नाथ आदि निवासी सांस्कृतिक अखाडा सिंहभुम बुलावा, नटवा सांस्कृतिक टीम ने हिस्सा लिया. कार्यक्रम में मुख्य […]

मधुपुर : बावन बीघा स्थित स्वयं सेवी संस्था संवाद परिसर में आयोजित दो दिवसीय सांस्कृतिक समागम ‘झारखंड जतरा’ का शुक्रवार को रंगारंग कार्यक्रम के बीच संपन्न हुआ. झारखंड जतरा में हरियाड झारखंड, दिशोम चिगलपहडी, फुलो झानो टीम बनकाटी लोटा नाथ आदि निवासी सांस्कृतिक अखाडा सिंहभुम बुलावा, नटवा सांस्कृतिक टीम ने हिस्सा लिया.
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पद्मश्री सीमोन उरांव ने उपस्थित समुदाय से कहा कि हमारी संस्कृति बहुत ही प्राचीन है. यहां ईश्वर ने धरती और आकाश की रचना की और धरती रूपी धरोहर को मनुष्य को सौंप दिया कि हम इसको आबाद करें और आंनद पूर्वक रहे. कहा कि अभी जो आधुनिक विकास हो रहा है. उसमें धरती और उसमें रहने वाले जीव जंतु सहित मनुष्यों पर भी नष्ट होने का खतरा उत्पन्न हो गया है. आदिवासी संस्कृति के बारे में उन्होंने कहा कि आरंभ से ही आदिवासी गांव की ग्राम सभा सबसे ऊपर मानी गयी है. ग्राम सभा का विकास होगा. तभी संस्कृति बची रहेगी.
समाज सेवी घनश्याम ने बताया कि संवाद द्वारा झारखंड जतरा का कार्यक्रम पिछले 15 वर्षों से पोटका मधुपुर, रांची, साहिबगंज व पाकुड़ में मनाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इस तरह की कार्यक्रम के आयोजन की बुनियाद में मौजुदा कलाकार व ग्राम सभा है. कहा कि देश की आजादी के पूर्व में भी झारखंड जतरा व अन्य तमाम तरह की आंदोलन की प्रेरणा व ताकत रही है. बताया कि शामिल होने वाले औजार, तीर धनुष न होकर ढोल मांदर आदि नृत्य व गीत के माध्यम से जो ऊर्जा निकलती है.
जमशेदपुर से आये सिद्वु ने कहा कि पुरस्कार व अवार्ड की लालच में झारखंडी युवा अपने संस्कृति को भूलते जा रहे हैं. वे मांदर और नगाड़े की जगह ड्रम बजाने की होड़ में जुटे है. शिशिर टुडू ने कहा कि आदिवसी संस्कृति का संबंध आस्था, रीति रिवाज व खेती बाड़ी है, जो आज खतरे में है. उसे बचाने की जिम्मेवारी हम सबो की है. कहा कि आदिवासी संस्कृति को बचाने के लिए सांस्कृतिक प्रतिरोध यानी जतरा का आयोजन होना जरूरी है. कार्यक्रम में बेरनादेत तिर्की, सालगी मारडी आदि ने भी अपने-अपने विचार रखा. कार्यक्रम के अंत में संवाद द्वारा अतिथियों एवं कलाकार प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया. कार्यक्रम को सफल बनाने में कुंदन भगत, अबरार ताबिंदा, ऐनी टुडू, सोगोरी हेम्ब्रम, कुसुम देवी, सीमा, महानंद, विनोद, विजय, श्यामलाल, पूजा, जावेद, रतन, श्यामली, अस्तानंद झा, सबिता देवी आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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