-विशाल दत्त ठाकुर-
देवघरः वसंत ऋतुराज है. गरमी की त्याग, तपस्या और वर्षा की सरसता ही वसंत को श्रीप्रदान करती है. माघ मास की पंचमी तिथि से वसंत का आगमन माना जाता है. खेतों में लहलहाते सरसों के पीले फूल, बगीचे में पेड़ों के नए-नए पत्ते व आम्र मंजर की खुशबू, कड़ाके की ठंड के बाद शरीर को गरमी प्रदान करती गुनगुनी धूप, विद्या, बुद्धि की देवी की आराधना की तैयारी करते स्कूल-कॉलेज के छात्र, चारों ओर स्वच्छ वातावरण वसंत के आगमन का अहसास कराती है. वसंत के आते ही चारों ओर माहौल बदलने लगता है.
खेतों में लहलहाते गेहूं की बालियां, सरसों के फूलों को देख किसानों के चेहरे खिल जाते हैं तो धूप में गरमी बढ़ने से लोगों को ठंड से थोड़ी निजात मिलती है. इस ऋतु में पंच तत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं. ये पंच तत्व जल, वायु, धरती, आकाश व अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाने लगते हैं. आसमान स्वच्छ हो जाता है तो हवा सुहावनी, अग्नि (सूर्य) रुचिकर लगने लगता है तो जल पीयूष के समान सुख देनेवाला और धरती तो मानो साकार सौंदर्य का दर्शन कराने लगती है.
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रवृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देव: सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वति भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।
इस दिन मां शारदे की पूजा होती है. इसे वसंत पंचमी, श्री पंचमी, वागीश्वरी जयंती भी कहते हैं. वसंत पंचमी को मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है. पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार के रूप में सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी अराधना की जायेगी.
इस कारण हिन्दू धर्म में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है. छात्र-छात्राएं मां शारदे की पूजा की तैयारी में जुटे हैं. मूर्तिकार ज्ञान व बुद्धि की देवी की प्रतिमा को अंतिम रूप देने में लगे हैं. छोटे बच्चों का विद्यारंभ संस्कार भी इसी दिन होता है. जिन घरों में छोटे बच्चों की पढ़ाई शुरू करानी होती है वहां इस तिथि को मां शारदे की प्रतिमा के सामने पुरोहितों द्वारा विद्यारंभ संस्कार कराया जाता है.
सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा।।