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आधुनिकता के दौर में गुरु-शिष्य की परंपरा गौण, रिश्ते में भी दरार

देवघर : आज शिक्षक दिवस है. भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस पर शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए पूरे भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा में बहुत विश्वास रखते थे. एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे. भारतवर्ष में गुरुओं का सम्मान […]

देवघर : आज शिक्षक दिवस है. भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस पर शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए पूरे भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा में बहुत विश्वास रखते थे. एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे. भारतवर्ष में गुरुओं का सम्मान आज से नहीं बल्कि पुरातनकाल से ही किया जाता है.
गुरु को माता-पिता से भी बढ़कर दर्जा दिया जाता है. गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम व पवित्र हिस्सा है. जीवन में सफल होने के लिए गुरु का मार्गदर्शन मिलना आवश्यक है. जीवन में वही लोग सफल होते हैं, जो गुरू-शिष्य परंपरा को आत्मसात करते हैं. लेकिन, बदलते परिवेश में शिक्षा देने वाले गुरु के मायने बदल गए हैं. गुरु अपने विद्यार्थियों के साथ दोस्ताना व्यवहार भी रखने लगे हैं. गुरु-शिष्य के इस फ्रेंडली (दोस्ताना) कल्चर की झलक काफी हद तक उच्च एवं तकनीकी शिक्षण संस्थान, महानगरों से निकल कर छोटे शहरों में सहज ही देखने को मिल जाती है.
बदलते संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा तो गौण हो गयी है. वहीं टीचर-स्टूडेंट के संबंध में भी कहीं न कहीं दरार पड़ने लगा है. ऐसे में टीचर-स्टूडेंट के संबंध में कैसे सुधार किया जाये. स्टूडेंट के लाइफ में टीचर की भूमिका क्या है. इस बारे में सेवानिवृत्त शिक्षकों सहित एकेडमिक में बेहतर रिजल्ट देने वाले छात्र क्या सोचते हैं. उनसे संवाददाता विजय कुमार ने बात की, प्रस्तुत है बातचीत के अंश…

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