सारठ: देवघर एसडीएम जय ज्योति सामंता ने देवघर डीडीसी को कानून का पाठ पढ़ाया है. दरअसल देवघर डीसी कुछ दिनों के लिए प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए बाहर गये थे. इस दौरान डीडीसी, डीसी के प्रभार में थे. बतौर प्रभारी डीसी (डीडीसी) शशि रंजन प्रसाद सिंह ने देवघर एसडीएम को पत्र लिखकर आंगनबाड़ी केंद्र निर्माण पर रोक लगाने के आदेश पर आपत्ति जतायी. उन्होंने एसडीएम को निर्देश दिया कि किसी भी प्रकार की योजना में यदि गड़बड़ी की शिकायत मिलती है तो पहले उसकी जांच करवानी चाहिए. समस्या का प्रशासनिक हल ढूंढ़ना चाहिए. फिर भी मामला नहीं सलटता है तो एक्ट का प्रयोग किया जाना चाहिए. आपने जो आदेश दिया गया है. इससे विकास कार्य प्रभावित हो रहा है.
प्रभारी डीसी के पत्र के जवाब में एसडीएम ने डीडीसी पर पलटवार किया और कानूनी सलाह दे डाली. एसडीएम ने कहा कि उनके कोर्ट ने धारा 144 व 107 के तहत जो कार्रवाई की है, वह न्यायिक प्रक्रिया है. साथ ही दोनों पक्षों को नोटिस निर्गत कर अपना-अपना पक्ष स्वयं या अधिवक्ता के माध्यम से प्रस्तुत करने को कहा गया है.
यह न्यायिक प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया में किसी भी व्यक्ति द्वारा हस्तक्षेप करना उचित नहीं है. एसडीएम ने अनुमंडल अदालत के माध्यम से डीडीसी (तत्कालीन प्रभारी डीसी) से कहा है कि इस मामले में उन्हें यदि कुछ कहना है तो सरकारी अधिवक्ता या लोक अभियोजक के माध्यम से पैरवी कर सकते हैं. इस तरह से न्यायिक कार्य में हस्तक्षेप करना आइपीसी की धारा 228 का उल्लंघन माना है. एसडीएम ने डीडीसी को भेजे गये इस पत्र की प्रतिलिपि डीजे को भी भेज दिया है.
गौरतलब है कि जब डीडीसी ने यह पत्र एसडीएम को लिखा वे प्रभारी डीसी थे. अब डीसी प्रशिक्षण से लौट आये हैं. अब मामला फंस गया है कि एसडीएम के पत्र का जवाब आखिर कौन देंगे, डीसी या डीडीसी?
क्या है आइपीसी की धारा 228
भादवि की धारा 228 के अनुसार किसी पब्लिक सर्वेट को अनावश्यक हस्तक्षेप करने के आरोप में छह माह की सजा या फिर एक हजार का जुर्माना हो सकता है.