देवघर: मुक्त होने के बाद केके बिल्डर के अपहृत कर्मियों को जसीडीह लाया गया तो उनलोगों की जान में जान आया. कर्मियों के चेहरे पर खुशी झलक रही थी. वे लोग अब अपने को सुरक्षित महसूस कर रहे थे. घटना के बारे में सभी ने एक साथ घटना की कहानी बयां करते हुए कहा कि आठ दिन उनलोगों का समय जंगल में बड़े ही कष्ट से बीता. उठाने के बाद से नक्सली कुछ दूर तक उनलोगों को पैदल चला कर ले गये.
आंख बांध बाइक से ले गये थे नक्सली : कुछ दूर पैदल ले जाने के बाद नक्सलियों ने उनलोगों को बाइक पर बैठाया और आंख बांध दिया. कितना दूर ले गये, इसका पता नहीं चल पाया. जंगल में ले जाकर उनलोगों को रखा जाता था. पत्थर पर ही बैठाते थे और वहीं रात को सभी सोते थे.
साथ ले गये कंबल लेकर बितायी रात : रिहा हुए कर्मियों ने कहा कि ठंड से बचने के लिये नक्सलियों ने उनलोगों को कंबल या चादर नहीं दिया था. घटना के वक्त कैंप से ही उनलोगों के कहने पर सभी कर्मी साथ में अपने-अपने कंबल व चादर ले गये थे. उसी को वे लोग बिछाते भी थे और ओढ़ते भी थे. वहां बैठने व सोने के लिये कोई व्यवस्था नहीं थी. जमीन व पत्थर पर बैठते व सोते थे.
कहने पर लघुशंका व शौच के लिये ले जाते थे : अकेले उनलोगों को कहीं नक्सली नहीं जाने देते थे. बोलते थे कुछ नहीं करेंगे. तुमलोगों से कोई दुश्मनी नहीं है. जब लघुशंका व शौच की इच्छा होती थी तो कहने पर वे लोग साइड ले जाते थे. पुन: ठिकाने पर लाते थे.
आठ दिनों में बदला सात ठिकाना : मुक्त कर्मियों ने कहा कि आठ दिनों में उनलोगों का सात ठिकाना बदला. रविवार से एक ही जगह पर रखा गया था. शाम के बाद से कुछ खाना भी नहीं मिला.
रविवार शाम के बाद खौफ में कटा समय : उनलोगों ने कहा रविवार शाम करीब चार बजे के बाद से समय खौफ में कटा. नक्सलियों ने कहा था कि चारों तरफ से पुलिस ने घेर लिया है. आज खाना भी नहीं दे पायेंगे. हल्ला मचाया तो गोली मार देंगे. उनलोगों के पास लंबा व छोटा हथियार था. नक्सलियों के साथ वे लोग भी बैठे रहे.