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सर्वसम्मति नहीं तो चुनाव ही बेहतर विकल्प

यदि अंतिम सरदार पंडा के वंशज नहीं हैं या उसमें विवाद है तो दूसरा अॉप्शन चुनाव ही है 45 सालों से चल रहा है गद्दी विवाद देवघर : बाबा मंदिर के ट्रस्टी सह प्रबंधन बोर्ड के सदस्य केएन झा ने सरदार पंडा गद्दी विवाद में सुलहनामा और उसके विरोध की बात पर पत्रकारों को वस्तु […]

यदि अंतिम सरदार पंडा के वंशज नहीं हैं या उसमें विवाद है तो दूसरा अॉप्शन चुनाव ही है

45 सालों से चल रहा है गद्दी विवाद

देवघर : बाबा मंदिर के ट्रस्टी सह प्रबंधन बोर्ड के सदस्य केएन झा ने सरदार पंडा गद्दी विवाद में सुलहनामा और उसके विरोध की बात पर पत्रकारों को वस्तु स्थिति से अवगत कराया है. उन्होंने कहा कि 1891 में वर्द्धमान हाइकोर्ट ने सरदार पंडा गद्दी विवाद में दो तरह की व्यवस्था दी है. उस फैसले में कोर्ट ने नियम ही बना दिया था.

कौन हो सकता है सरदार पंडा

पहले रूल के अनुसार : सरकार पंडा का बड़ा लड़का हो, उसकी उम्र कम से कम 40 वर्ष हो, पूजा-पाठ, शिव के प्रति आस्था हो तो वह सरदार पंडा का उत्तराधिकारी होगा. यदि बड़ा लड़का नहीं रहे तो बड़ा पोता यदि वह उपरोक्त अहर्ता पूरी करता है तो वह उत्तराधिकारी हो सकता है.

दूसरा रूल : यदि उपरोक्त दोनों में से कोई नहीं है तो ऐसी परिस्थिति के लिए कोर्ट ने दूसरी व्यवस्था दी है कि उस परिवार का कोई भी सदस्य सरदार पंडा की गद्दी का दावेदार हो सकता है. इन दावेदारों में से सरदार पंडा के लिए चुनाव कराने की व्यवस्था दी है. जिसके रिटर्निंग अफसर एसडीएम रहेंगे. चुनाव में पंडा समाज के लोग इन दावेदारों में से योग्य को अपना सरदार पंडा चुनेंगे. बहुमत जिसे मिलेगा, वही सरदार पंडा चुना जायेगा, जो सबको मान्य होगा.

विवाद खत्म कर चुनें सरदार पंडा

श्री झा ने कहा कि इसमें कहीं कोई विवाद नहीं है. अंतिम सरदार पंडा भवप्रीतानंद ओझा को कोई संतान नहीं था. वे नावल्द थे, इसलिए पहला अॉप्शन जो कोर्ट ने दिया है, वह यहां कतई लागू होने की स्थिति में नहीं है. इसलिए सरदार पंडा के वंशज जो भी हैं, जो गद्दी का दावा कर रहे हैं, सभी को कोर्ट द्वारा दी गयी व्यवस्था के दूसरे अॉप्शन में जाना चाहिए. दूसरे अॉप्शन में सभी दावेदार चुनाव में खड़े हों, नॉमिनेशन करें, एसडीएम की देख-रेख में चुनाव होगा. पंडा समाज के लोग वोटर होंगे. जिसे अधिक वोट मिलेगा, वह चुना जायेगा और सबको मान्य होगा.

पहले भी हुए हैं दावे खारिज

उन्होंने पिछले कई उदाहरण को दर्शाते हुए कहा कि पहले रूल में सरदार पंडा का दावा करने के लिए कई दावेदारों ने कोशिश की लेकिन हर बार कोर्ट ने खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि ईश्वरीनंद ओझा के जितने भी वंशज हैं, एक जगह हो जायें, आपस में फैसला कर लें, जो सहमति बने, उन्हें हम भी मान लेंगे. उन्होंने कहा कि अंतिम सरदार पंडा का देहांत हुए 45 साल बीत गये, तब से मामला चल रहा है. इस मामले में युक्तिसंगत बात होनी चाहिए.

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