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सोनारायठाढ़ी में मौत के मुहाने पर बचपन, फिर भी चुप्पी !

देवघर: एक ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन व भारत सरकार देश में कुपोषण के अभिशाप से मुक्ति के लिए भारी धन राशि का जुगाड़ कर स्थिति से उबरने की हर संभव कोशिश में लगी है. वहीं झारखंड में इस काम को करने वाली जबावदेह व जिम्मेवार महकमा एनआरएचएम (स्वास्थ्य विभाग) के साथ – साथ समाज कल्याण […]

देवघर: एक ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन व भारत सरकार देश में कुपोषण के अभिशाप से मुक्ति के लिए भारी धन राशि का जुगाड़ कर स्थिति से उबरने की हर संभव कोशिश में लगी है. वहीं झारखंड में इस काम को करने वाली जबावदेह व जिम्मेवार महकमा एनआरएचएम (स्वास्थ्य विभाग) के साथ – साथ समाज कल्याण विभाग की कामकाज वाली शैली अवाक करने को काफी है. पूरे मामले को अपनी खुली आंखों से देखने वाले यह तय नहीं कर पा रहे कि करोड़ों खर्च करने के वाद भी जमीनी हकीकत इतना हृदय विदारक क्यों है.

देवघर जिले के सोनारायठाढ़ी प्रखंड की ही बात करें तो यहां के दर्जनों गांव में कुपोषण की स्थिति बेहद भयावह है. इन दर्जनों गांवों में प्राय: एक या एक से अधिक बच्चे कुपोषण के खतरनाक स्तर तक पहुंच चुके हैं.

इनमें नौ माह से लेकर पांच साल के बच्चे भी कुपोषित पाये गये हैं. अधिकांश बच्चे संताल व अन्य पिछड़ी जमात से आते हैं. प्रखंड के जरुआडीह गांव में बुधन रजक के दो बच्चे अनीता व विकास तय मानक से काफी कम 9. 5 स्तर के हैं. इसे काफी खतरनाक माना जाता है. अगर इन्हें हाइ-अटेंसन हेल्थ कवरेज नहीं मिला, तो कुछ भी संभव है. जान भी जा सकती है. इसी प्रकार लालूडीह, झनझी, दुलोडीह, सिमरा, पवा, बहिंगा, परसबनी, पहरीडीह, जरुआडीह आदि गांवों में रामसुनी हेंब्रम, राजेंद्र यादव, पवन दास, माजिद मियां, दिनू मांझी, हीरा पहड़ी, उचित मंडल सरीखे ढ़ेरों नाम हैं. जिनके घरों में किलकारी तोरुठ ही गयी है, पर सब कुछ ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब बिलखना इनकी नियती बन जाये.

इस पूरे प्रकरण में हैरानी वाली बात यह है कि जब वर्णित गांवों में आंगनबाड़ी केंद्र चलाया जा रहा है. ऐसे में इन्हीं गांव के बच्चे कुपोषित कैसे हुए. जिला स्तर पर भी सदर में कुपोषण केंद्र है . क्या है इसकी सच्चई. कैसे इन गांवों के बच्चे का ग्रोथ रेट विश्व स्वास्थ्य संगठन के पोषण स्टैंडर्ड मसलन एमयूएसी के निर्धारण से भी कम है. इनमें से ज्यादातर बच्चों की स्थिति अविलंब रेफरल केंद्र भेजे जाने की है, फिर भी इस काम की मॉनिटरिंग का दायित्व निभा रहे एनआरएचएम भी निश्चिंतता कैसे है. दरअसल इस कल्याणकारी योजना में ऐसे अधिकारियों को लगा रखा गया है, जिनकी अभिरुचि का यह विषय ही नहीं बनता. सिवाय इसके की जिला मुख्यालय में कुछ सेमिनार- सेंपोजियम निबटा कर अपना दायित्व निभाने को ही आदर्श स्टाइल बना रखे हैं. उनका क्या शायद वे मान बैठे हैं कि गरीब के बच्चे अक्सर रिरियाने के लिए ही पैदा होते हैं, वह मरे या जीये. उनके कार में न तो पेट्रोल कम होना चाहिए और न ही खरोंच लगना चाहिए.

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