।। फाल्गुनी मरीक कुशवाहा ।।
– कुपोषण से तीन बेटे की जा चुकी है जान, चौथा बेटा भी पीड़ित
देवघर : झारखंड के ऐतिहासिक गांव रोहिणी में एक मुहल्ला है अजान टोला. इस टोला में एक परिवार ऐसा है जो एक-एक कर अपने बच्चे को काल के गाल में समाते हुए देख रहा है, लेकिन वह विवश है. विवशता है गरीबी की, दकियानूसी विचारों की, अशिक्षा की. इस परिवार की पीड़ा को आजतक किसी ने नहीं समझा.
रेलवे क्रॉसिंग से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर फूस-खपड़ैल की झोपड़ी में दंपति मंजू राउत व देवंती देवी रहते हैं. गरीबी के साये में इनके घर पांच बेटे व तीन बेटियों ने जन्म लिया. दिहाड़ी मजदूरी कर आठ बच्चों का ललन-पालन कर बड़ा करने की मंशा मन में रखे दंपति के सुनहरे सपने सजाये थे.
इस क्रम में एक-एक कर उनके तीन बेटों की अज्ञात बीमारी से मौत हो गयी. चिकित्सकों की मानें, तो कुपोषण से तीन बेटे पिंटू राउत, टिंकू राउत व रामू राउत की मौत हुई है. चौथे बेटे लक्ष्मण राउत भी इस अज्ञात बीमारी की चपेट में है. एक बेटा सही सलामत है जिन पर परिवार को आसरा है. इधर तीनों बेटियों में इस बीमारी का कोई असर नहीं है. इस परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है.
छठे वर्ष की उम्र में हो जाती है बीमारी
माता-पिता की मानें तो जन्म के पांच साल तक बच्चे स्वस्थ रहते हैं. छठे साल में पांव फूलने लगता है. घुटना के नीचे तथा एड़ी के कुछ ऊपर तक पांव फूल जाता है. इस कारण बच्चे को खड़ा होने में परेशानी होने लगती है. बच्च कुछ पल के लिए खड़ा होता है और फिर लुढ़क कर जमीन पर बैठना मजबूरी हो जाती है. इसके कुछ माह के बाद दोनों पांव सूखने लगते हैं.
मांसपेशियों का सफाया हो जाता है तथा सिर्फ हड्डियां नजर आने लगती है. यहां तक की चलना-फिरना बंद हो जाता है. भूख खत्म हो जाती है और बच्चे की मौत हो जाती है. पिता मंजू राउत ने बताया कि उनके पांचवें बेटे लक्ष्मण राउत की उम्र छह-सात साल के करीब है. पहले हट्टा-कट्ठा था, अब दोनों पांव दुर्बल हो चुके हैं. चल नहीं पाता है. अपने तीन भाइयों की मौत का डर उसके जेहन में समा चुका है. कहते हैं कि यह अनुवांशिक रोग नहीं है. कई जगहों पर चिकित्सकों को दिखा रहे हैं लेकिन कोई बीमारी को पकड़ नहीं पा रहा है. सीधे तौर पर कह रहे हैं कि इसका इलाज पटना, दिल्ली या रांची में ही संभव है.
गरीबी के चलते नहीं करा पा रहे बेहतर इलाज
बच्चों की मां देवंती देवी कहती हैं कि उनके पति चौक-चौराहे पर दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. किसी तरह सबों का पेट पाल रही हूं. गरीबी के चलते बेहतर इलाज नहीं करा पा रही हूं. सरकारी अस्पताल में जाती हूं, तो दवा देकर घर भेज दिया जाता है. कहा जाता है कि इस बीमारी का इलाज दिल्ली में जाकर कराना होगा. इससे मायूस होकर घर में बैठ जाते हैं. संझला बेटा कृष्ण कुमार राउत फिलहाल सही सलामत है और परिवार को उसी पर आसरा है.
क्या कहते हैं चिकित्सक
इस बीमारी के संबंध में पीचएसी जसीडीह के चिकित्सक कहते हैं कि यह रहस्यमय बीमारी है. वैसे तो कुपोषण से इनकार नहीं किया जा सकता है. बेहतर इलाज से जान बच सकती है. जन्म के समय से सभी टीके लगवाये जाते, तो शायद बीमारी का असर नहीं होता.