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सदर अस्पताल में बेकार पड़ी है लाखों की मशीनें फोटो सिटी के बाहर है. इंट्रो : देवघर अस्पताल को जिला अस्पताल का दर्जा अबतक नहीं मिल सका है. न यहां के जन प्रतिनिधि अौर न विभाग के आलाधिकारी ही अस्पताल को सुविधाएं प्रदान करने की दिशा में कोई कोई पहल कर रहे हैं. नतीजा देवघर […]

सदर अस्पताल में बेकार पड़ी है लाखों की मशीनें फोटो सिटी के बाहर है. इंट्रो : देवघर अस्पताल को जिला अस्पताल का दर्जा अबतक नहीं मिल सका है. न यहां के जन प्रतिनिधि अौर न विभाग के आलाधिकारी ही अस्पताल को सुविधाएं प्रदान करने की दिशा में कोई कोई पहल कर रहे हैं. नतीजा देवघर को जिला गठित हुए 32 साल बाद भी जिलेवासियों को स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर सेवा के लिए सरकारी सुविधा की बजाय निजी क्लीनिक या हॉस्पीटल का सहारा लेने को विवश होना पड़ता है. दो वर्ष पूर्व वर्ष 2013 में सूबे के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र सिंह ने देवघर अस्पताल पहुंच कर जिला अस्पताल बनाने की घोषणा की थी. लेकिन रांची जाते ही सारा कर्तव्य भूल गये. घोषणा को कागज पर उतारने में कहां मामला फंस गया. यह कोई नहीं जान सका. नतीजा सदर को जिला अस्पताल का दर्जा नहीं मिला. जबकि देवघर एक विश्व प्रसिद्ध तीर्थनगरी है. यहां प्रत्येक दिन 10-15 हजार व प्रत्येक वर्ष दो करोड़ से ज्यादा लोग दर्शन व भ्रमण के सिलसिले में देवघर पहुंचते हैं. बावजूद यहां का अस्पताल अनुमंडलीय अस्पताल के रूप में कार्यरत है. संवाददाता, देवघर सदर अस्पताल में समुचित संसाधन के अभाव में मरीजों को इलाज के लिए बाहर रेफर कर दिया जाता है. वहीं दूसरी अोर किसी भी तरह की आवश्यक जांच के लिए अस्पताल के बाहर जांच सेंटर पर ही निर्भर रहना पड़ता है. अस्पताल परिसर में लाखों रुपये की कई ऐसी मशीनें है, जो उपयोग न होने के कारण धूल फांक रही है. इनमें इसीजी मशीन, आधुनिक एक्स-रे मशीन, रेडिएंड वार्मर आदि शामिल है. इसके पीछे विशेषज्ञ टेक्नीशियन व समुचित प्रबंधीय अभाव में मशीनों का प्रयोग न होने से शोभा की वस्तु बनी हुई है. हालांकि रेडिएंट वार्मर को समय-समय पर मरम्मत करवा कर उससे काम लेने का प्रयास चलता रहता है. समस्या का स्थायी निदान नहीं निकल पाता. इसीजी मशीन की कीमत लगभग पांच से छह लाख रुपये है, आधुनिक एक्स-रे मशीन की कीमत चार से पांच लाख रुपये तथा रेडिएंट वार्मर की कीमत 70 हजार से 1.50 लाख रुपये तक है. अस्पताल में नहीं है इसकी सुविधा अस्पताल में आइसीयू व डाइलिसिस सेवा के नहीं रहने से मरीजों को संकट की स्थिति में शहर के किसी निजी क्लीनिक या हॉस्पीटल का सहारा लेना पड़ता है. अन्यथा समस्या ज्यादा गंभीर रही तो इन मशीनों के अभाव में इलाज के लिए बाहर जाना पड़ता है. इस तरह की समस्याअों से धनाढय लोगों के साथ-साथ आम लोगों को भी जूझना पड़ता है. ——————-कहते हैं डीएस——————बहुत पहले इसीजी मशीन लाया गया था. जबकि एक एक्स-रे मशीन रखा हुआ है. एक से ही काम चल रहा है. दूसरे को कहां लगाया जायेगा. यह निर्णय नहीं हुआ है. रेडिएंट वार्मर को ठीक कराकर उपयोग किया जा रहा है. – डॉ सोबान मुर्मू, डीएस, सदर अस्पताल.

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