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स्वास्थ्य व शिक्षा के मामले में देवघर नक्कारखाने में तब्दील !

देवघर: दक्षिण एशिया की प्रमुख संगठन ‘फाईट हंगर फस्र्ट’ ने देश के छह राज्यों में पोषण व शैक्षणिक स्तर की जानकारी प्राप्त करने के लिए एक डोर टू डोर कैंपेन चलाया. इस कार्यक्रम के तहत झारखंड में देवघर जिले के सोनारायठाढ़ी प्रखंड के तीन पंचायत अंतर्गत पचास गांवों में प्रत्येक घरों का सर्वेक्षण हुआ. सर्वेक्षण […]

देवघर: दक्षिण एशिया की प्रमुख संगठन ‘फाईट हंगर फस्र्ट’ ने देश के छह राज्यों में पोषण व शैक्षणिक स्तर की जानकारी प्राप्त करने के लिए एक डोर टू डोर कैंपेन चलाया. इस कार्यक्रम के तहत झारखंड में देवघर जिले के सोनारायठाढ़ी प्रखंड के तीन पंचायत अंतर्गत पचास गांवों में प्रत्येक घरों का सर्वेक्षण हुआ. सर्वेक्षण इंस्टीच्यूट ऑफ अप्लाइड स्टेटिक्स एंड डेवलपमेंट स्टडीज व प्रवाह संस्था ने संयुक्त रूप से किया.

इस सर्वेक्षण में मुख्य तौर पर गर्भवती महिलाओं, दो वर्ष से कम आयु के बच्चों की माताओं, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चे और पांच से चौदह वर्ष तक के आयु वाले बच्चों को केन्द्र में रखा गया था. कुल दो हजार एक सौ सत्तर घरों के सर्वेक्षण में जो परिणाम आये, वह बेहद चौंकाने वाले थे. खास कर पांच से चौदह वर्ष आयु के बच्चों का सर्वेक्षण उनके शैक्षणिक स्तर जानने व शेष उनके पोषण स्तर जानने के लिए किया गया था.

इसके अतिरिक्त मात्र 3.5 फीसदी आबादी ही उच्च विद्यालय के आगे पढ़ पायी है. साथ ही 2.9 फीसदी बच्चे स्कूल पहुंच ही नहीं पाते.

सर्वेक्षण में पता चला कि आंकड़ों की दुर्बलता के कई कारण हैं. इसमें शिक्षकों की अनुपस्थिति व घटिया शैक्षणिक स्तर मुख्य हैं . यही कारण है कि बच्चों के नामांकन दर में लगातार गिरावट दर्ज हो रहा है . वर्ग 5 व 6 में ड्रॉप आउट दर भी 18 . 8 फीसदी पाया गया. जो तुलनात्मक दृष्टि से सर्वाधिक है. औसतन गांव से स्कूल की दूरी दो किलोमीटर है. साथ ही 12.8 फीसदी विद्यालय में आज भी छात्रओं के लिए अलग टॉयलेट तक की व्यवस्था नहीं है.

स्वास्थ्य की स्थिति और भी भयावह

पिछले एक वर्ष के दौरान आठ फीसदी महिलाओं की मौत उनके गर्भावस्था या बच्च जनने के दौरान हुई.

40 फीसदी गंभीर बीमारी से मौत

मरने वालों में प्रतिशत अर्थात 11.5 फीसदी पांच वर्ष से कम आयु के बच्चे.

35.6 प्रतिशत कुपोषण के कारण कोई न कोई बीमारी से पीड़ित.

सर्वेक्षण में पाया गया कि प्रखंड स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाएं भारत सरकार के मानदंड से काफी पीछे हैं.

24.8 फीसदी लोगों को मनरेगा में एक दिन भी काम नहीं मिला.

18.3 प्रतिशत गर्भवती महिला की यु 1 8 वर्ष से कम .

66.9 प्रतिशत महिला ही आंगनबाड़ी केन्द्रों में नामित

38.4 फीसदी ने एक बार, 61.6 फीसदी ने दो बार आंगनबाड़ी केंद्र में मिलने वाली सुविधाओं का लाभ लिया.

गंभीर तथ्य यह पाया गया कि 64.1 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट थे.

9.1 प्रतिशत बच्चे डब्लू एच ओ के स्टैंडर्ड के अनुसार कुपोषित मिले.

बच्चों की लंबाई भी सही नहीं पाई गई. बॉडी इंडेक्स महिलाओं व बच्चों का खराब एवं गुणवत्ता विहीन पाया गया. अब सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ग्रामीण शिक्षा व स्वास्थ्य के मामले में चाहे जितने भी दावे किये जा रहे हों, उसकी सच्चई क्या है. साथ ही समय-समय पर इस मद में खर्च किये गये धनराशि का आउट-पुट क्या बताता है.

( स्रोत : फाईट हंगर फर्स्ट की नेट पर जारी रिपोर्ट )

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