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करोड़ों की चल-अचल संपत्ति पर है माफियाओं की नजर, किसान हित भूला ग्रेन बैंक

देवघर: किसानहित के लिए स्थापित देवघर का को-अॉपरेटिव ग्रेन बैंक राजनीतिक पेच में मृतप्राय हो गया है. 1903 के बाद देवघर जिले के गरीब किसानों को महाजनों व सूदखोरों से मुक्ति दिलाने के लिए सेंट्रल को-अॉपरेटिव ग्रेन बैंक की स्थापना की गयी थी. लेकिन आज यह ग्रेन बैंक किसानहित भूल गया है. प्रशासनिक पकड़ से […]

देवघर: किसानहित के लिए स्थापित देवघर का को-अॉपरेटिव ग्रेन बैंक राजनीतिक पेच में मृतप्राय हो गया है. 1903 के बाद देवघर जिले के गरीब किसानों को महाजनों व सूदखोरों से मुक्ति दिलाने के लिए सेंट्रल को-अॉपरेटिव ग्रेन बैंक की स्थापना की गयी थी. लेकिन आज यह ग्रेन बैंक किसानहित भूल गया है. प्रशासनिक पकड़ से बाहर हुए ग्रेन बैंक के संचालन पर ग्रहण लग गया है. दूसरी ओर को-अॉपरेटिव ग्रेन बैंक की करोड़ों की संपत्ति पर भी माफियाओं की नजर है.
सरकारी नियंत्रण नहीं रहने से डूब रही है संस्था
लगभग सौ वर्ष पुरानी संस्था ग्रेन बैंक कई कारणों से डूबने के कगार पर है. 1980 में नियम में परिवर्तन करके एसडीओ को हटाने के कारण यह संस्था सरकारी नियंत्रण से बाहर हो गयी. इस कारण इसका दोहण होने लगा, यह तथाकथित लोगों का चारागाह बन गया. सहकारिता के अफसरों ने अपने सगे संबंधियों की बहाली कर दी. इस कारण संस्था पर वित्तीय भार बढ़ने लगा. वर्ष 1989 में 1.22 करोड़ बिहार सरकार ने ऋण राहत के लिए दिया था, लेकिन उक्त राशि वेतन लेकर ही खत्म कर दिया गया. 2003-04 में राज्य सरकार से ऋण माफी नहीं मिलने के कारण संस्था की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गयी है.

यही नहीं संस्था के संचालन के लिए चुनाव में भी अनियमितता की लगातार बातें उठ रही है. गबन, गलत ढ़ंग से सदस्य बना देने जैसे कई मामले सामने आये हैं. साधारण आमसभा पहला चुनाव प्रखंड स्तर शाखा गोला में ही होना चाहिए लेकिन चुनाव मुख्यालय में कराया गया. मधुपुर प्रखंड में शमलापुर गोला खत्म ही हो गया है. वर्तमान में गोला की जमीन को भाड़े पर लगाया गया है. वित्तीय अनियमितता और ग्रेन बैंक की स्थिति पर मुख्यमंत्री का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए देवघर के ब्रज किशोर पंडित ने पत्र लिख कर उच्चस्तरीय जांच की मांग की है. श्री पंडित ने पत्र में कहा है कि ग्रेन बैंक के सभी वर्ष का अॉडिट कराया जाये तो बड़ा घोटाला सामने आयेगा और कईयों की गरदन फंसेगी. साथ ही सरकार किसान हित की इस संस्था को पुनर्जीवित करने की दिशा में ठोस कदम उठाये.

क्या है चुनाव का नियम
नियमावली के अनुसार तीन सौ सदस्यों पर एक डेलिगेट चुनकर ग्रेन बैंक जाता है तथा इन्ही डेलिगेट के बीच सचिव व पर्षद का चुनाव होता है जो ग्रेन बैंक का संचालन करते है. लेकिन देवघर में चुनाव और डेलिगेट चयन में भी अनियमितता की शिकायत लोगों ने मुख्यमंत्री से की है.
ग्रेन बैंक खोलने का उद्देश्य
1903 ई में संतालपरगना के कमीश्नर सीएच बंपास ने देवघर जिले के गरीब किसानों को महाजनों और सूदखोरों से मुक्ति दिलाने के लिए सेंट्रेल को-अॉपरेटिव ग्रेन बैंक की स्थापना की थी. देवघर डिविजन में कोई बैंक नहीं था, इस कारण यहां के गरीब किसानों का शोषण होता था, ग्रेन गोला चालू हो जाने से किसानों को खेती के लिए धान का बीज मिलने लगा. कम सूद पर बीज और नगद पैसा मिलने पर यहां के किसानों में खुशहाली आयी. कुछ ही सालों में ग्रेन बैंक के 45 हजार ऋ़णी सदस्य बन गये.
ग्रेन बैंक का संचालन 1980 तक एसडीओ करते थे.
ग्रेन बैंक इतने कम समय में तीव्र गति से विकास किया, जिसके फलस्वरूप पूरे देवघर जिले में 32 शाखाएं खुल गयी. 25 शाखाओं की अपनी जमीन व गोदाम है, शेष सात शाखाएं भाड़े पर संचालित हो रहे थे. दुमका से कमीश्नर को संचालन में परेशानी होती थी, इसलिए कमीश्नर ने संचालन का भार एसडीओ सदर को दे दिया. एसडीओ की देखरेख में ग्रेन बैंक बेहतर काम कर रहा था.
1950 में हुआ रजिस्ट्रेशन
ग्रेन बैंक का रजिस्ट्रेशन 1950 में बिहार में राज्यपाल द्वारा सहकारिता अधिनियम के तहत हुआ था. वर्ष 1980 में कुछ राजनीतिक लोगों के प्रवेश से ग्रेन बैंक का ह्रास हुआ. सबसे पहले राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण एसडीओ को हटाया गया. इस कारण ग्रेन बैंक जो सीधे किसान हित के लिए काम कर रही थी. उस पर प्रशासनिक पकड़ खत्म हो गयी.

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