देवघर: कुपोषण से मुक्ति के लिए केंद्र सरकार की मदद से बाल विकास परियोजना के तहत देवघर जिले में कुल 1567 आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन हो रहा है़ प्रत्येक माह लाखों रुपये पोषाहार व ‘रेडी टु इट’ मद में खर्च किये जा रहे हैं. इनमें तीन से छह वर्ष के बच्चों को केंद्रों में रोजाना दी जाने वाली खिचड़ी के लिए 50 लाख रुपये पोषाहार की राशि 567 आंगनबाड़ी केंद्रों में खर्च की जा रही है.
जबकि राज्य सरकार द्वारा रेडी टु इट(डिब्बा बंद भोजन) छह माह से तीन वर्ष के बच्चों समेत गर्भवती व धात्री महिलाओं को दिये जाने का प्रावधान है. रेडी टु इट की आपूर्ति राज्य सरकार के स्तर से किया जा रहा है. रेडी टु इट में शामिल भोजन को दो श्रेणियों में बांटा गया है. इसमें पंजीरी फूड व उपमा फूड शामिल है.
पंजीरी फूड छह माह से तीन वर्ष बच्चे व उपमा फूड गर्भवती व धात्री महिलाओं को दिया जा रहा है. लेकिन संताल परगना में जब से रेडी टु इट के तहत पंजीरी फूड व उपमा फूड दिया जा रहा है, इसका बहिष्कार शुरु से ही लाभुकों द्वारा किया जाता रहा है. बच्चे व गर्भवती तथा धात्री महिलाएं इस पैकेट बंद भोजन में रुचि नहीं दिखा रहे हैं. कई जगह तो केंद्रों से प्राप्त करने के बाद खाने में रुचि नहीं होने पर पंजीरी व उपमा को घर में जानवरों के आगे डाल दिया गया है. अक्सर इस भोजन के विरोध का कोपभाजन आंगनबाड़ी सेविका व सहायिका को बनना पड़ता है.
केस स्टडी: एक
पालोजोरी: कुपोषण को दूर करने के लिए बाल विकास परियाजना द्वारा आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से धातृ माताओं व बच्चों के लिए दिया जाने वाला रेडी टु इट पोषाहार में उपमा व पंजरी का उपयोग लाभुक खाने में नहीं के बराबर करते हैं. भुरकुंडी बाराकोला निवासी मायना चैड़े व शिवानी मरांडी ने बताया कि आंगनबाड़ी केन्द्र द्वारा उन्हेें पैकेट बंद पोषाहार मिलता है. लेकिन पैकेट में मिलने वाले सत्तु को खिलाने पर बच्चों को दस्त होने लगाता है और उसका पेट खराब हो जाता है. इस कारण इसका उपयोग नहीं करते हैं. वहीं पालोजोरी के ठेंगाडीह निवासी हेमली देवी, गायत्री देवी, बिरमा देवी, आशा देवी आदि महिलाओं ने बताया कि उन्हें प्रत्येक माह पोषाहार मिलता है. लेकिन इसका उपयोग वे लोग नहीं करते हैं. अपने पालतु जानवरों को खिला देते हैं.
केस स्टडी: दो
प्रतिनिधि, देवीपुर
आंगनबाड़ी केंद्रों में दिया जाने वाली पंजीरी का सेवन बच्चे नहीं करना चाहते हैं. अगर पहली पहली बार सेवन करते भी हैं तो हजम नहीं कर पाते हैं और बाद में इस भोजन को खाने में रूचि नहीं दिखाते हैं. कई लाभुक मजबुरन गाय , बकरी , मुर्गी के चारा में मिलाकर इसका उपयोग कर लेते हैं. पिरहाकट्टा के लाभुक लबली हांसदा ने बताया कि पंजीरी स्वादिष्ट नहीं रहने के कारण बच्चे सेवन नहीं करते हैं. इसलिए बकरी वगैरह को खिला देते हैं. वहीं शहरपुरा निवासी लाभुक पुष्पा देवी व अंजू देवी ने बताया कि सिर्फ स्वादष्टि नहीं होने की वजह से नहीं, बल्कि इस भोजना का सेवन करने से बच्चे का पेट भी खराब हो जाता है. बताया जाता है गुणवत्ता खराब रहने के बावजूद मजबूरीवश लाभुक पोषाहार ले तो लेते हैं, मगर इसे खाने से कतराते हैं.
पंजीरी में कैलरी व प्रोटीन का दावा
सरकार की ओर से अपूर्ति की गयी पंजीरी में आंगनबाड़ी केंद्रों में प्रत्येक बच्च्चों को 125 ग्राम पंजीरी प्रतिदिन के हिसाब से महीने में एक बार वितरण किया जाता है. इसमें छह माह से तीन वर्ष के बच्चे पंजीरी खाने में बिल्कुल रुचि नहीं दिखाते हैं. इधर सरकार का दावा है कि पंजीरी में 526.71 कैलोरी व 16.05 ग्राम प्रोटीन है़ प्रत्येक दिन के हिसाब से 125 ग्राम पंजीरी में 36़ 25 ग्राम गेहूं का आटा, 20 ग्राम रागी का आटा, 18.75 ग्राम सोया आटा, 12.50 ग्राम सोया का आटा, 25 ग्राम चीनी का पाउडर व 12.50 ग्राम खाद्य तेल शामिल है़
उपमा में 22 ग्राम प्रोटीन का दावा
गर्भवती तथा धात्री महिलाओं को 150 ग्राम उपमा प्रत्येक दिन के हिसाब से महीने का पैकेट एक बार आंगनबाड़ी केंद्रों में वितरित कर दिया जाता है. सरकारी दावे पर अगर गौर किया जाय तो 150 ग्राम उपमा में 22 ग्राम प्रोटीन गर्भवती तथा धात्री महिलाओं को दिया जा रहा है. इसमें 9.5 ग्राम प्रोटीन, 1.1 ग्राम तूर दाल व 11.2 ग्राम सोया शामिल होने का दावा है़