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प्रवचन::::मिस्त्र की साधना भारत की साधना से मिलती-जुलती

यद्यपि आज मिस्त्र के बहुत ही कम ग्रंथ उपलब्ध हैं, तथापि यह स्पष्ट है कि उस काल के लोग ध्यान की वह पद्धति जानते थे जो तत्कालीन भारत में प्रचलित तांत्रिक ध्यान से मिलती-जुलती है और वह काल भारत में सिंधु घाटी की महान सभ्यता का काल था. ‘द इजिप्शियन बुक ऑफ द डेड’ एकमात्र […]

यद्यपि आज मिस्त्र के बहुत ही कम ग्रंथ उपलब्ध हैं, तथापि यह स्पष्ट है कि उस काल के लोग ध्यान की वह पद्धति जानते थे जो तत्कालीन भारत में प्रचलित तांत्रिक ध्यान से मिलती-जुलती है और वह काल भारत में सिंधु घाटी की महान सभ्यता का काल था. ‘द इजिप्शियन बुक ऑफ द डेड’ एकमात्र ग्रंथ है जो हमें उस काल की जानकारी प्रदान करता है. यह ग्रंथ बताता है कि वे लोग ध्यान की उस पद्धति का अभ्यास करते थे जिससे आत्मिक तथा प्राण-ऊर्जा का संचयन एवं सवर्धन होता था और भौतिक शरीर के परे चेतना के उच्च आयामों के अनुभव के लिए इस अतिरिक्त ऊर्जा की अत्यधिक आवश्यकता होती है. ‘टिबेटन बुक ऑफ दि डेड’ तथा प्लेटो के ग्रंथ ‘फैडो’ के साथ मिस्त्र का उपर्युक्त ग्रंथ यह बताता है कि उस काल के लोग उस अति विकसित चेतना के न केवल ज्ञाता थे, अपितु धनी भी थे जो भौतिक शरीर की मृत्यु के बाद भी विद्यमान रहती है.

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