देवघरः श्रावणी मेले के 11 दिन बीत चुके हैं. पहली सोमवारी के बाद से ही भीड़ फटने लगी है. पहले तो टाइम स्लॉट बैंड, सुविधा पास के चक्कर में विभिन्न राज्यों से आने वाले कांवरिये ऊहापोह में रहे. अब पुन: पुराने सिस्टम से कतार व्यवस्था के तहत जलार्पण हो रहा है. व्यवस्था में बदलाव हुआ है इसकी जानकारी कांवरियों को नहीं दी गयी.
जिस तरह देवघर जिला प्रशासन बिहार में सुल्तानगंज, पटना, झारखंड में रांची में जाकर वहां के अधिकारियों के साथ प्रेस कांफ्रेंस करके श्रावणी मेला 2013 की नयी शुरुआत की जानकारी दी थी. अब जबकि नया सिस्टम बंद हो गया है. तो इसकी जानकारी भी विधिवत प्रचार-प्रसार के माध्यम से हर राज्य में देना चाहिए था. लेकिन जिला प्रशासन 11 दिन बीतने के बाद भी कोई सूचना का प्रचार प्रसार नहीं करवाया है. देवघर के सूचना केंद्र भी जलार्पण के सिस्टम में पुन: बदलाव की जानकारी नहीं दे रहे हैं. सरकार के आदेश के बाद अब बाबा मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए क्या व्यवस्था, बदलाव क्या हुआ है, इसकी जानकारी तक देने वाला कोई नहीं है. मीडिया को भी इस आशय की ब्रीफिंग नहीं की गयी है. मेला क्षेत्र में कुछ भी हो जाये, जैसे टंकी का पानी पीने से रिक्शा चालक की मौत हो गयी, इसके बारे में भी प्रशासन ने पक्ष नहीं रखा, मीडिया को वस्तुस्थिति से अवगत नहीं कराया जा रहा है.
नहीं हटी टाइम स्लॉट बैंड की होर्डिग: विगत एक सप्ताह से पुरानी पद्धति से जलार्पण हो रहा है. टाइम स्लॉट बैंड बंद हो गया है. लेकिन पुन: व्यवस्था में बदलाव किया गया है, इसके लिए होर्डिग नहीं लगाया गया है. अभी तक टाइम स्लॉट बैंड तक की होर्डिग जिला प्रशासन ने नहीं हटाया है. इससे देवघर आने वाले श्रद्धालुओं में ऊहापोह की स्थिति उत्पन्न हो रही है. क्योंकि बाहर से आने वाले कांवरियों को यह पता नहीं है कि व्यवस्था में पुन: बदलाव हुआ है. देवघर में प्रवेश के बाद होर्डिग देख असमंजस में पड़ जाते हैं. इसलिए जब व्यवस्था बदला है तो होर्डिग भी बदला जाना चाहिए.
दुकानदार व तीर्थ पुरोहित ऊहापोह : इस बार नये प्रयोग से देवघर श्रवणी मेले की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है. भले ही प्रशासन के आंकड़ों में कांवरिये पिछले साल के मुकाबले दोगुना आये हैं. आय में भारी वृद्धि हुई है लेकिन मेला क्षेत्र के दुकानदार, संकल्प कराने वाले तीर्थ पुरोहित की नजर में मेले में भीड़ कम है. इससे व्यवसाय पर असर पड़ा है. नये प्रयोग से पूंजी भी निकलना मुश्किल लग रहा है. लोगों का कहना है कि व्यापक प्रचार-प्रसार करके व्यवस्था में बदलाव की जानकारी लोगों को दी जाती तो दृश्य कुछ और होता.