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प्रवचन:::: साधक क्षमता का विकास गुरु के माध्यम से करते हैं

यह अवधि कम से कम सात वर्षों की होती थी जिसमें साधक आत्मशुद्धि तथा मन एवं स्नायुसंस्थान के विकास पर विशेष ध्यान देता था. उनकी यह मान्यता थी कि पर्याप्त प्रशिक्षण के बिना साधक उच्च चेतना के विकास में होने वाले अनुभवों को सहन नहीं कर सकता. प्रशिक्षण की अवधि में साधक उस गुप्त ज्ञान […]

यह अवधि कम से कम सात वर्षों की होती थी जिसमें साधक आत्मशुद्धि तथा मन एवं स्नायुसंस्थान के विकास पर विशेष ध्यान देता था. उनकी यह मान्यता थी कि पर्याप्त प्रशिक्षण के बिना साधक उच्च चेतना के विकास में होने वाले अनुभवों को सहन नहीं कर सकता. प्रशिक्षण की अवधि में साधक उस गुप्त ज्ञान का अनुभव करता था जिसके द्वारा ईश्वर अथवा आत्मा के साथ संयोग स्थापित होता है. यह उस भारतीय मान्यता से बहुत कुछ मिलता-जुलता है जिसमें साधक को दीर्घकाल तक गुरु के आश्रम में रहकर सेवा-कार्य करना तथा प्रशिक्षण लेना होता था. उस काल में साधक अपने अंदर प्राण तथा आत्मिक ऊर्जा के विस्फोट को संभालने की क्षमता का विकास गुरु से उच्च चेतना में स्थित होने की दीक्षा भी ग्रहण करता है.

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