चक्रों को मोटे तौर से तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं. जैसे- मूलाधार तथा स्वाधिष्ठान चक्र मेरुदंड में नीचे की ओर स्थित हैं तथा इनका गुण तामसिक है. अपने व्यक्तित्व, स्वभाव और गुण के अनुसार उनके कार्य अधार्मिक, असामंजस्यपूर्ण तथा सामान्य स्वभाव से कुछ अलग होते हैं. मणिपुर तथा अनाहत मेरुदंड के मध्य से स्थित हैं. इनके गुण रचनात्मक व अरचनात्मक, स्वीकारात्मक व अस्वीकारात्मक अथवा दोनों ही होते हैं. ये दोनों रजोगुण प्रधान होते हैं. रजोगुणी व्यक्तियों के कर्म मिश्रित होते हैं. विशुद्धि तथा आज्ञा मेरुदंड के ऊपरी हिस्से में स्थित हैं. इनका गुण सात्विक तथा कर्म रचनात्मक होते हैं. जो व्यक्ति सतोगुण प्रधान होते हैं, उनके कर्म और विचार भी अपने स्वभावानुसार सतोगुणी तथा रचनात्मक होते हैं.धर्मों तथा अन्य परंपराओं में चक्रों का स्थान: विश्व के प्राय: सभी भागों में, सभी धर्मों तथा परंपराओं में आध्यात्मिक जागृति के लिए चक्रों का उपयोग किया जाता है.
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प्रवचन:::: सभी जगहों पर आध्यात्मिक जागृति के लिए चक्रों का प्रयोग होता है
चक्रों को मोटे तौर से तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं. जैसे- मूलाधार तथा स्वाधिष्ठान चक्र मेरुदंड में नीचे की ओर स्थित हैं तथा इनका गुण तामसिक है. अपने व्यक्तित्व, स्वभाव और गुण के अनुसार उनके कार्य अधार्मिक, असामंजस्यपूर्ण तथा सामान्य स्वभाव से कुछ अलग होते हैं. मणिपुर तथा अनाहत मेरुदंड के मध्य से […]
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