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प्रवचन::: अपनी अनुभूतियों का द्रष्टा बनें

अपने शरीर तथा फर्श के साथ उसके स्पर्श बिंदुओं का ख्याल कीजिये. चेतना को पूरे शरीर पर घुमाइये (जैसा कि योग निद्रा में करते हैं). पूरे शरीर को अधिक से अधिक शिथिल कीजिये तथा अपने पूरे शरीर के किसी एक अंग का नहीं, बल्कि पूरे शरीर का एक साथ ख्याल कीजिये. अब स्वयं से पूछिये- […]

अपने शरीर तथा फर्श के साथ उसके स्पर्श बिंदुओं का ख्याल कीजिये. चेतना को पूरे शरीर पर घुमाइये (जैसा कि योग निद्रा में करते हैं). पूरे शरीर को अधिक से अधिक शिथिल कीजिये तथा अपने पूरे शरीर के किसी एक अंग का नहीं, बल्कि पूरे शरीर का एक साथ ख्याल कीजिये. अब स्वयं से पूछिये- ‘क्या मैं यह शरीर हूं? ‘ ‘क्या मैं इस शरीर का मात्र द्रष्टा हूं? ‘ अथवा ‘क्या मैं शरीर तथा उसका द्रष्टा दोनों हूं ?’ अपनी चेतना को सहज श्वास पर ले आइये. प्रत्येक श्वास-प्रश्वास को साक्षी भाव से देखते जाइये. कहिये- ‘मैं जानता हूं कि मैं श्वास ले रहा हूं, मैं जानता हूं कि मैं श्वास छोड़ रहा हूं .’ श्वास-प्रश्वास की इस चेतना को कुछ समय तक जारी रखिये. अब अपने मन के कार्यकलापों के प्रति सजग होइये, अपने विचारों, अनुभूतियों, संस्कारों, दृश्यों, स्मृतियों आदि को करीब पांच से दस मिनट तक साक्षी भाव से देखिये.

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