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प्रवचन::: अपने विचारों में दिव्यता का दर्शन करें

ज्ञानयोगी को अपने प्रत्येक कार्य तथा विचार में एकता तथा दिव्यता का दर्शन करना चाहिये. इस प्रकार इस कठिन साधना द्वारा अनेकत्व की भ्रांत धारणा और वैयक्तिकता तथा सभी प्रकार के द्वंद्वों का नाश होता है चाहे किसी सामान्य व्यक्ति की दार्शनिक विचारधारा ही क्यों न हो, फिर भी ज्ञानयोग के मार्ग पर चलना उसके […]

ज्ञानयोगी को अपने प्रत्येक कार्य तथा विचार में एकता तथा दिव्यता का दर्शन करना चाहिये. इस प्रकार इस कठिन साधना द्वारा अनेकत्व की भ्रांत धारणा और वैयक्तिकता तथा सभी प्रकार के द्वंद्वों का नाश होता है चाहे किसी सामान्य व्यक्ति की दार्शनिक विचारधारा ही क्यों न हो, फिर भी ज्ञानयोग के मार्ग पर चलना उसके लिये बहुत कठिन होता है, क्योंकि उसे अपनी अनुभूतियों के अनुकूल जीवन जीना होता है. अलग-अलग व्यक्तियों के लिए ज्ञानयोग-ध्यान की विभिन्न पद्धतियां हैं. आजकल हम लोग विज्ञान एवं तर्क के युग में जी रहे हैं, जिसमें मनुष्य को इन्द्रियों के माध्यम से अथवा तर्क द्वारा सत्य को देखने-परखने से ही संतोष प्राप्त होता है. ज्ञानयोग-ध्यान की पद्धति विशेष रूप से ऐसे व्यक्तियों के लिए बहुत अनुकूल है जो बौद्धिक, तार्किक तथा प्रत्येक वस्तु को विश्लेषणात्मक तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं.

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