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प्रवचन::: मानव स्वयं से ही प्रश्न पूछता है

ज्ञानयोग: मानव चाहे किसी भी पृष्ठभूमि से क्यों न आया हो, अंतत: वह अंतिम सत्य के अन्वेषण में अवश्य प्रवृत्ति होगा. भले ही धर्म, विश्वास, संस्कृति, जाति तथा राष्ट्रीयता में पारस्परिक विभिन्नता हो, लेकिन उसके जीवन में एक समय ऐसा अवश्य आयेगा जब वह स्वयं से ऐसे प्रश्न पूछेगा जो प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों के […]

ज्ञानयोग: मानव चाहे किसी भी पृष्ठभूमि से क्यों न आया हो, अंतत: वह अंतिम सत्य के अन्वेषण में अवश्य प्रवृत्ति होगा. भले ही धर्म, विश्वास, संस्कृति, जाति तथा राष्ट्रीयता में पारस्परिक विभिन्नता हो, लेकिन उसके जीवन में एक समय ऐसा अवश्य आयेगा जब वह स्वयं से ऐसे प्रश्न पूछेगा जो प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों के समक्ष भी उपस्थित हुये थे. अनेक लोगों को अपनी सफलताओं तथा उपलब्धियों से भी स्थायी शांति तथा संतोष नहीं मिल पाता, क्योंकि पुन: उनके हृदय में वे ही सनातन प्रश्न उठते रहते हैं जिनके उत्तर की प्यास उनके अंतर्तम में हमेशा से रही है. ‘मैं कौन हूं?’ ‘मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है?’ ‘मैं कहां से आया हूं?’ ‘मेरे जन्म लेने का क्या प्रयोजन है?’ ‘मैं किधर जा रहा हूं?’ ऐसे कुछ प्रश्न उन्हें ध्यान तथा आध्यात्मिक साधना के पथ पर आगे बढ़ने में मदद करते हैं.

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