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नवजात की गयी जान, अब लीपापोती को दे रहे अलग-अलग बयान

समय पर होता इलाज तो बच सकती थी जान महिला की कराह सुनकर भी की अनसुनी देवघर : शनिवार को सदर अस्पताल में इलाज के अभाव में एक नवजात की मौत की घटना ने मानवता को शर्मसार कर दिया. बैद्यनाथपुर नवाडीह गांव निवासी उमेश यादव पत्नी रीना देवी को लेकर सदर अस्पताल पहुंचे. महिला ओपीडी […]

समय पर होता इलाज तो बच सकती थी जान
महिला की कराह सुनकर भी की अनसुनी
देवघर : शनिवार को सदर अस्पताल में इलाज के अभाव में एक नवजात की मौत की घटना ने मानवता को शर्मसार कर दिया. बैद्यनाथपुर नवाडीह गांव निवासी उमेश यादव पत्नी रीना देवी को लेकर सदर अस्पताल पहुंचे. महिला ओपीडी के फर्श पर रीना करीब पांच घंटे तक प्रसव वेदना से तड़पती रही. लेकिन उसके इलाज के लिए डॉक्टर नहीं थे.
फर्श पर तड़पती रीना की कराह पूरे अस्पताल में गूंजती रही. पर उसकी गूंज न चिकित्सकों को सुनाई दी और न ही स्वास्थ्यकर्मियों को. मासूम की मौत के बाद डॉक्टर जहां अलग-अलग बयानबाजी कर अपना दामन बचाने में लगे रहे वहीं अस्पताल प्रबंधन पूरे मामले की लीपापोती में जुटा रहा. रीना के नवजात की मौत के बाद डॉक्टर अपने-अपने तरीके से जानकारी दे रहे थे. आखिरकार उस नवजात की मौत हो गयी पर इसकी कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं.
किसकी बात में कितनी सच्चाई
डॉ निवेदिता
एक तरफ महिला डॉक्टर निवेदिता कहती हैं कि 9:30 बजे अस्पताल पहुंची, लेकिन मरीज का टांका काटने वार्ड में चली गयी. ऐसे में यह सवाल उठता है कि जो महिला प्रसव वेदना से कराह रही हो उसकी जान बचाने से ज्यादा क्या मरीज का टांका काटना जरूरी था.
डॉ एके अनुज
शिशु रोग डॉ एके अनुज का कहना है कि साढ़े नौ बजे बच्चे को देखते ही बेहतर इलाज के लिए निजी क्लिनिक रेफर किया गया है. जबकि परिजनों के मुताबिक रीना को 10 बजे के बाद ही प्रसव हुआ है. अब डॉक्टर साहब की बातों में कितनी सच्चाई है यह तो जांच के बाद ही पता चल सकेगा.
विरोधाभास पैदा कर रहा डॉक्टरों का बयान
डीएस डॉ विजय कुमार ने बताया कि अस्पताल परिसर में ही ऑटो में महिला ने बच्चे को जन्म दिया है. जबकि डॉ निवेदिता ने बताया कि महिला ने मंदिर मोड़ के पास बच्चे को जन्म दी है.
अब डीएस और महिला डॉक्टर का बयान विरोधाभास पैदा कर रहा है. डीएस ने यह भी कहा कि डॉ अनुज ने नवजात को भर्ती कराने कहा, तो परिजन बाहर के डॉक्टर से दिखाने ले गये. हालांकि डॉ एके अनुज ने कहा कि नवजात अंडरवेट था, इसलिए बेहतर इलाज के लिए उसे रेफर कर दिया गया. पूरे मामले में सच किसे मानें. हालांकि अस्पताल प्रबंधन ने स्पष्टीकरण तो पूछा है पर इस पर क्या कार्रवाई होती है यह देखने वाली बात होगी.
सदर अस्पताल में ही संस्थागत प्रसव की खुली पोल
संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य विभाग करोड़ों खर्च कर रही है. फिर भी प्रसव वेदना से कराहती महिला का इलाज नहीं हो पाता है और इलाज के अभाव में उसके नवजात की मौत तक हो जा रही है. फिर भी व्यवस्था को बेहतर कर पाने में जनप्रतिनिधि की ओर से सार्थक पहल नहीं की जा रही.
सांसद ने जनता को स्वास्थ्य लाभ दिलाने के लिए अस्पताल में ऑफिस खुलवाया है, जहां मरीजों की समस्या सुनने उनके दो सलाहकार भी बैठते हैं. बावजूद सदर अस्पताल में शनिवार को इतना बड़ा मामला हुआ और सांसद के सलाहकार तक नजर नहीं आये तथा ताला लटक रहा था.

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