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लापरवाही: बच्चों को भरती तो कराया जाता है, लेकिन पूरा नहीं होता इलाज, कुव्यवस्था का शिकार एमटी सेंटर
देवघर: सदर अस्पताल का कुपोषण उपचार केंद्र खुद कुपोषण का शिकार है. ग्रामीण इलाकों से बच्चों को लाकर भरती तो कराया जाता है, किंतु दो-तीन दिन रहने के बाद खुद अभिभावक बिना डिस्चार्ज कराये उन्हें लेकर चले जाते हैं. अधिकांश मामले इसी तरह के हैं. केंद्र में जहां बच्चे भरती थे, उसके बेड के नीचे […]
देवघर: सदर अस्पताल का कुपोषण उपचार केंद्र खुद कुपोषण का शिकार है. ग्रामीण इलाकों से बच्चों को लाकर भरती तो कराया जाता है, किंतु दो-तीन दिन रहने के बाद खुद अभिभावक बिना डिस्चार्ज कराये उन्हें लेकर चले जाते हैं. अधिकांश मामले इसी तरह के हैं. केंद्र में जहां बच्चे भरती थे, उसके बेड के नीचे गंदगी थी़ वहीं रसोईघर में ताला बंद था. जानकारी हो कि सदर अस्पताल का कुपोषण उपचार केंद्र वर्ष 2010 में खुला था. अब तक वहां कितने बच्चे भरती हुए या कितने ठीक होकर घर गये, इस संबंध में जानकारी देने से सेंटर प्रभारी सीता कुमारी ने इनकार कर दिया़.
कुपोषित बच्चों की जांच होती है सरकारी खर्च पर : बच्चों की लंबाई, वजन मापी, बांह मापी व पैर के सूजन की जांच के बाद भरती किया जाता है. इसके बाद शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह पर कुपोषित बच्चों की खून जांच, एक्सरे आदि सरकारी खर्च पर कराया जाता है. फिर रिपोर्ट के बाद डॉक्टर की सलाह पर बच्चों को दवा दी जाती है व चिकित्सीय आहार चलता है.
पहले बच्चों की मां को मिलते थे 200 रुपये : कुपोषण उपचार केंद्र पर बच्चों का इलाज कराने आयी मां को सरकार की तरफ से दो सौ रुपये प्रतिदिन के हिसाब से भोजन आदि खर्च के लिये मिलते थे. किंतु अब राशि की कटौती कर आधी कर दी गयी है. माताओं को खाने के लिये प्रतिदिन अब मात्र 100 रुपये ही दिये जाते हैं. इस खर्च में माताओं का प्रतिदिन का भोजन होता भी नहीं है. वहीं अगर इलाजरत बच्चों को छोड़ माताएं अन्य बच्चों को साथ लेकर आती हैं तो उन्हें उपवास रहना पड़ता है या फिर सभी आधे पेट खाकर समय काटती हैं.
प्रलोभन देकर लाया जाता है बच्चों को : कुपोषण उपचार केंद्र में ड्यूटी कर रही महिला स्वास्थ्यकर्मियों का कहना है कि बच्चों को प्रलोभन देकर यहां तक लाया जाता है. इलाके में यह कहा जाता है कि बच्चों के भरती होने के बाद माताओं को प्रतिदिन भोजन के लिये दो सौ रुपये मिलेंगे. वहीं अस्पताल से छुट्टी के वक्त 1500 रुपये का भुगतान होगा. ऐसा नहीं होने से भी भ्रम की स्थिति है.
जुलाई में 14 व अगस्त में 11 बच्चे हुए भरती
वर्ष 2017-18 के आंकड़ों पर गौर करें तो अप्रैल महीने में पांच बच्चों को ग्रामीण क्षेत्रों से लाकर कुपोषण उपचार केंद्र में भरती कराया गया था. सभी बच्चों के डिस्चार्ज होने के पूर्व ही अभिभावक उन्हें लेकर निकल गये. मई माह में दो बच्चों को भरती कराया गया, ठीक होने के बाद दोनों को डिस्चार्ज किया गया. जुलाई माह में 14 बच्चे भरती कराये गये थे, जिसमें 12 छुट्टी डिस्चार्ज होने पूर्व ही निकल गये. अगस्त माह में कुल 11 बच्चों को लाकर भरती कराया गया. तीन दिन इलाज चलने के बाद 10 बच्चों को लेकर उनलोगों के अभिभावक चले गये. वहीं एक बच्चे प्रीतम कुमार को भरती कर इलाज कराया जा रहा है.
कहते हैं सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ एससी झा ने कहा कि सेंटर प्रभारी को जानकारी होगी तब तो वह कुछ बतायेगी. फिलहाल हम रांची में हैं. तीन दिनों से विभागीय बैठक चल रही है. लौटकर आएंगे, तब देखेंगे.
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