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पूरी नहीं हुई देवघर-सुल्तानगंज रेल परियोजना

– में ही शुरू हुई थी परियोजना -2010 में हो जाना था पूरा -अब कहा जा रहा है 2014 तक पूरी होगी योजना देवघरः संतालपरगना में रेल लाइन का जाल बिछाने की योजना पर काम झारखंड बनने के बाद से ही शुरू हो गया था. काम तेज गति से हो, इसके लिए झारखंड की सभी […]

– में ही शुरू हुई थी परियोजना

-2010 में हो जाना था पूरा

-अब कहा जा रहा है 2014 तक पूरी होगी योजना

देवघरः संतालपरगना में रेल लाइन का जाल बिछाने की योजना पर काम झारखंड बनने के बाद से ही शुरू हो गया था. काम तेज गति से हो, इसके लिए झारखंड की सभी रेल परियोजना में झारखंड ने पहले 60 फीसदी राशि दी, अब जो योजनाएं स्वीकृत हुई हैं उसमें राज्य सरकार 50 फीसदी राशि दे रही है.

आधा पैसा राज्य का लगने के बाद भी केंद्र सरकार की रेल परियोजनाएं समय पर पूरी नहीं हुई. इसका जीता जागता उदाहरण है-देवघर-सुल्तानगंज रेल परियोजना. 185 किमी लंबी रेल परियोजना पर काम वर्ष 2002 में शुरू हुई. करार के मुताबिक इस योजना को 2010 तक पूरा हो जाना था. लेकिन बिहार के कुछ इलाकों में जमीन

अधिग्रहण का पेच फंसने के कारण योजना की गति धीमी हो गयी. नतीजा है कि 11 सालों में भी यह रेल परियोजना पूरी नहीं हुई. एक उपलब्धि यह रही कि देवघर से चांदन के बीच ट्रेन का परिचालन शुरू हुआ. लेकिन चांदन के बाद कटोरिया, बांका होते हुए सुल्तानगंज रेल लाइन पर काम कछुआ गति से चल रहा है. इसके अलावा दुमका से रामपुरहाट का काम भी कई वर्षो से चल रहा है. 64 किमी लंबी इस रेल परियोजना पर काम कछुआ गति से चल रहा है. गोड्डा-हंसडीहा रेललाइन पर काम शुरू नहीं हुआ है.

हीं हंसडीहा-भागलपुर के बीच रेल परिचालन हाल ही में शुरू हुआ है. इसके अलावा कई इलाकों में सव्रे चल रहा है. जिस समय की ये योजनाएं हैं, इसे भी पूरा हो जाना चाहिए था. अभी हाल ही में जसीडीह-पीरपैंती नयी रेल लाइन की स्वीकृति मिली है. यह ट्रैक 127 किमी लंबा होगा. संतालपरगना और बिहार के उक्त हिस्से में जमीन अधिग्रहण के फेर में योजनाएं लंबित हैं. कुल मिलाकर रेल परियोजना का जाल संतालपरगना में तो बिछा लेकिन योजनाओं के समय से पूरा नहीं होने के कारण इस क्षेत्र के लोगों को रेल सेवा का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

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