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लकड़ी व पत्तल बेच गुजर-बसर कर रहे बिरहोर

त्र जंगल पर आश्रित हैं प्रखंड के अधिकांश बिरहोर फोटो : कुंदा 1 में, टोकरी बनाता बिरहोर परिवाऱ कुंदा. कुंदा प्रखंड में रहने वाले बैगा व बिरहोर जाति के लोग आज भी विकास से कोसों दूर हैं. ये लोग आज भी जंगलों पर आश्रित हैं़ आज भी ये लोग रोजी-रोटी की तलाश में सुबह-सुबह जंगल […]

त्र जंगल पर आश्रित हैं प्रखंड के अधिकांश बिरहोर फोटो : कुंदा 1 में, टोकरी बनाता बिरहोर परिवाऱ कुंदा. कुंदा प्रखंड में रहने वाले बैगा व बिरहोर जाति के लोग आज भी विकास से कोसों दूर हैं. ये लोग आज भी जंगलों पर आश्रित हैं़ आज भी ये लोग रोजी-रोटी की तलाश में सुबह-सुबह जंगल की ओर निकल पड़ते हैं. प्रखंड के सोहर लाठ, जगन्नाथपुर, हरदियाटांड़, लोटवा, आसेदेरी, धरती मांडर, कोयता, नवादा आदि गांवों में बैगा व बिरहोर जाति के लोग रहते हैं. अपना व अपने परिवार के जीवन-यापन के लिए ये लोग जंगल पर आश्रित हैं. ये लोग पत्तल, दोना, टोकरी, सूप, पंखा व झाड़ू बना कर बाजार में बेचते हैं और उससे जो पैसा मिलता है, उससे गुजारा करते हैं. इसके अलावा ये लोग लड़की, दातुन व जड़ी-बूटी बेच कर भी गुजारा करते हैं. बिरहोर अपना पूरा समय इसी कार्य में लगा देते है़ं इस कार्य में उनका पूरा परिवार हाथ बंटाता है़ बिरहोरों ने बतायी पीड़ा फुटरू बिरहोनी ने कहा कि जंगल पर ही हमारा पूरा परिवार आश्रित है़ सुबह उठते ही जंगल से बांस लाकर टोकरी व सूप बनाते हैं और उसे बाजार में बेचते हैं़ नरेश बैगा ने कहा कि सरकार सिर्फ 35 किलो चावल देती है, जो पूरे परिवार के लिए काफी नहीं होता़ परिवार चलाने के लिए जंगल से लकड़ी लाकर उसे बाजार में बेचते हैं और उस पैसे से परिवार का भरन-पोषण करते हैं.

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